
ISKCON BHOPAL BYC
June 8, 2025 at 03:02 AM
यह स्थूल भौतिक शरीर, जो पाँच तत्वों से बना है, पहले से ही शाश्वत काल (काल), कर्म (क्रिया) और प्रकृति के गुणों (सत्व, रज, तम) के अधीन है। फिर यह शरीर, जो पहले से ही उस सर्प के मुख में है, कैसे दूसरों की रक्षा कर सकता है? दुनिया में जो राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आंदोलनों के माध्यम से स्वतंत्रता के प्रयास किए जा रहे हैं, वे किसी के लिए कोई वास्तविक लाभ नहीं कर सकते, क्योंकि वे सभी किसी उच्च शक्ति के नियंत्रण में हैं। एक बंधित जीव पूरी तरह से भौतिक प्रकृति के अधीन होता है, जिसे शाश्वत काल (काला) और भिन्न-भिन्न गुणों के अनुसार कर्म (क्रियाएं) द्वारा दर्शाया गया है। भौतिक प्रकृति के तीन गुण होते हैं — सत्त्व (गुणात्मकता), रज (जगत के प्रति आकर्षण) और तम (अज्ञान)। जब तक कोई व्यक्ति सत्त्वगुण में स्थित नहीं होता, वह वस्तुओं को जैसी वे वास्तव में हैं, वैसा नहीं देख सकता। रजोगुणी और तमोगुणी व्यक्ति तो वस्तुओं को उनके वास्तविक स्वरूप में देख ही नहीं सकते। इसलिए जो व्यक्ति रजसिक और तामसिक होता है, वह अपनी गतिविधियों को सही मार्ग पर नहीं ले जा सकता। केवल सत्त्वगुण में स्थित व्यक्ति ही कुछ हद तक दूसरों की सहायता कर सकता है। किन्तु अधिकांश लोग रजोगुण और तमोगुण में ही स्थित होते हैं, इसलिए उनके द्वारा बनाई गई योजनाएँ और परियोजनाएँ दूसरों के लिए बहुत कम लाभकारी होती हैं। इन तीन गुणों के ऊपर है शाश्वत काल — जिसे 'काला' कहा जाता है, क्योंकि यह भौतिक संसार की हर वस्तु के रूप को बदल देता है। मान लीजिए कि हम कुछ अस्थायी रूप से अच्छा कर भी लें, तो समय ही अंततः उस अच्छे प्रयास को व्यर्थ कर देगा। इसलिए एकमात्र उपाय यह है कि हम इस काल (काला) — जो कि काला-सर्प (ज़हरीला नाग) के समान है — से छुटकारा पा लें, क्योंकि इसका डंक सदैव प्राणघातक होता है। कोई भी इस सर्प के डंक से बच नहीं सकता। इस नाग रूपी काल और इसके अंग अर्थात् प्रकृति के गुणों से मुक्त होने का सर्वोत्तम उपाय है।
श्रीमद् भागवतम् 1.13.46 के तात्पर्य से
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