
'अपनी माटी' पत्रिका
May 16, 2025 at 12:15 PM
आत्महत्या मानव सभ्यता के इतिहास की प्राचीन और गंभीर समस्या है, जो वर्तमान समय में तीव्रता से बढ़ती जा रही है। आधुनिकता और वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ आत्महत्या की प्रवृत्ति भी समाज में विकरालता के साथ विकसित हो रही है। परंपरागत टीवी धारावाहिक, महाभारत-रामायण से लेकर हॉलीवुड, नेट्फ़्लिक्स, ओटीटी के हर दूसरे-तीसरे प्रोग्राम्स जैसे वेब-सीरीज, फिल्म, डॉक्युमेंट्री में आत्महत्या के प्रसंग मिल जाते हैं। आत्महत्या की यह प्रवृत्ति हिन्दी फिल्मों से भी अछूती नहीं है। 21वीं सदी में जितनी तेज़ी से भारतीय समाज में आत्महत्याएँ बढ़ी हैं, हिन्दी सिनेमा में भी उसका चित्रण उतनी ही तेज़ी से बढ़ा है। अनेकों ऐसी हिंदी फिल्में बनी हैं, जो आत्महत्या के ऐतिहासिक, मानसिक और सामाजिक सरोकारों पर बात करती हैं, जैसे 'थ्री इडियट्स', 'पीपली लाइव', 'छिछोरे', 'कार्तिक कॉलिंग कार्तिक', 'द डर्टी पिक्चर', 'हैदर', 'ए डेथ इन द गंज', 'पद्मावत', 'मसान', 'डंकी' आदि। प्रस्तुत शोध पत्र एक प्रयास है उन हिन्दी फिल्मों को जानने और समझने का जिनमें आत्महत्या के प्रस्तुतीकरण को विषय बनाया गया है। आत्मघात जैसे संवेदनशील विषय पर फिल्म बनाते समय कई बार इस बात का खतरा होता है कि वह फिल्म आत्महत्या को रूमानी तौर पर प्रदर्शित न करे। निर्देशक फिल्म में आत्महंता को प्रदर्शित करते समय कौन-सी सावधानियाँ लेते हैं तथा दर्शक इसे कैसे अनुभूत करते हैं, इस बात की चर्चा करना बहुत आवश्यक है। इस शोध पत्र के माध्यम से आत्महत्या के सिनेमाई संदर्भ को समझने में मदद मिलेगी। साथ ही आत्महत्या निवारण हेतु हिन्दी सिनेमा की भूमिका को भी इसमें रेखांकित किया गया है।
*शोध आलेख : हिन्दी फिल्मों में आत्महत्या : समस्या निवारण या ट्रेजेडी का नया आख्यान? / तरुण कुमार*
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