'अपनी माटी' पत्रिका
'अपनी माटी' पत्रिका
May 17, 2025 at 12:52 AM
भारतीय सामाजिक व्यवस्था में स्त्रियों का स्थान महत्वपूर्ण रहा है, स्त्रियों की दशा युग के अनुरूप परिवर्तित होती रही है। प्रारंभिक वैदिक साहित्य में परिलक्षित होता है कि प्राचीन भारतीय समाज में स्त्रियों को उच्च स्थान, सम्मान एवं अधिकार प्राप्त थे। ऋग्वेद में उषा, अदिति एवं आर्यानी जैसी देवियों तथा लोपामुद्रा, घोषा, विश्वावरा, शची, सप्रागी1 जैसी ऋग्वैदिक मंत्रों की रचयित्री विदुषी स्त्रियों का भी उल्लेख मिलता है। स्त्रियों का पुरुषों की तरह यज्ञोपवीत संस्कार होता था एवं वह गुरुकुल में पुरुषों के समान शिक्षा भी प्राप्त करती थीं। नवविवाहिता स्त्री पतिगृह की साम्राज्ञी होती थी। साम्राज्ञी श्वशुरे भव साम्राज्ञी श्वश्वाम भव। ननांदरि साम्राज्ञी भव साम्राज्ञी अधिदेवेषु।।2 मनुस्मृति में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि- यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।3 किंतु जैसे-जैसे प्राचीन भारतीय समाज स्थायित्व की ओर अग्रसर हो रहा था, उसमें सामाजिक जटिलताएं प्रबल होती जा रही थीं। उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों को उपनयन संस्कार से वंचित कर दिया गया, जिससे उनकी शिक्षा अवरूद्ध हो गई। ऐतरेय ब्राह्मण में कन्या-जन्म की निंदा करते हुए उसे चिंता का कारण बताया गया है । ["शोध आलेख : बौद्ध वाङ्गमय में प्रतिबिंबित स्त्री विमर्श : थेरीगाथा के विशेष संदर्भ में / मनोज कुमार दुबे एवं अमित कुमार सिंह "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( अंक 57 ) ] लिंक 👉 https://www.apnimaati.com/2024/12/blog-post_516.html
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