
'अपनी माटी' पत्रिका
May 18, 2025 at 12:25 AM
पिछली शताब्दी के पहले दशक में कार्टून बनाने और छपने की रियाजात के बारे में हम बहुत थोड़ा ही जानते हैं। मसलन, हमें सरस्वती संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी के बारे में यह जानते हैं कि वे कार्टून की संकल्पना विस्तृत ब्योरों के साथ लिखकर अपने प्रेस के अनुबंधित कलाकारों को देते थे। संपादक माँग के अनुसार कलाकार कार्टून बनाता था (सिंह 1951)। यह परंपरा बाद के दशकों में भी जारी रही, किन्तु साथ ही साथ तीसरे दशक से कार्टूनकार ख़ुद ही कार्टून बनाकर अपनी इच्छानुसार पत्रिका या संपादक को अपनी कला का नमूना भेजने लगे। मोहनलाल के उपलब्ध पत्रों से पता चलता है कि वह एक स्वतंत्र कार्टूनकार थे जो बाद में हिंदी पत्रिकाओं में कहानी, कविता, आलोचना, आदि भी लिखने लगे थे। उनके लिए, कार्टून बनाना हिंदी के खाली भंडार भरने के व्यापक राष्ट्रवादी परियोजना का हिस्सा था। वह ऐसे कलाकार नहीं थे जो किसी विशेष पत्रिका की संपादकीय टीम में कलाकारी करने, चित्र या कार्टून बनाने के लिए नियुक्त किये गए थे। उन्होंने संपादक की माँग पर कभी कार्टून नहीं बनाए। अलबत्ता, उन्होंने अपना कार्टून स्केच बनाकर इच्छुक संपादकों को प्रकाशित करने के लिए कहा। सकारात्मक उत्तर मिलने पर वे उन्हें अपनी टिप्पणी के साथ प्रकाशित करने के लिए भेजते। कम से कम उनके शुरुआती करियर को देखते हुए ऐसा ही लगता है। हालाँकि, उन्हें अपने कार्टून के लिए मिलने वाले पारिश्रमिक के बारे में हमें ठीक-ठीक नहीं पता। अपने वरिष्ठ मित्र और संपादक शिवपूजन सहाय को लिखे उनके पत्रों से जो पता चलता है वह है कि उन्हें अपने कार्टूनों के लिए पैसे मिलते थे जो उन्हें वैल्यू पेएबल पोस्ट (वीपीपी) से भेजे जाते थे। गंगा के संपादक शिवपूजन सहाय को लिखे एक लंबे पत्र से एक अंश ग़ौरतलब है।
[" शोध आलेख : एक विस्मृत कार्टूनकार : मोहनलाल महतो ‘वियोगी’ (1901-1990) / प्रभात कुमार "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( अंक - 59 ) ]
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