'अपनी माटी' पत्रिका
'अपनी माटी' पत्रिका
June 4, 2025 at 01:55 PM
वे मझ नवम्बर के मझौले दिन थे जब घर से निकलने का सुभीता बैठ रहा था। रात का कद दिन से दो अंगुल बेसी जरूर था पर दोनों का जोड़पा बेमेल न था। टिकट पक्के, मन कच्चा। एक तो पवन-पथ से पहली यात्रा तो दिल डगुपचु-डगुपचु ,दूसरा दूसरे कोतिक (झंझट) भी कम न थे। कनाडा में अज्ञात हमलावरों ने खालिस्तानी निज्जर का स्थान 'खाली' कर दिया था। चरमपंथी और कनाडा सरकार उन 'अज्ञातों' के ज्ञात होने का दावा कर रही थी। नवम्बर की जीवनी में इंदिरा गाँधी की हत्या और सिख विरोधी दंगे भी लिखे हैं। चुनांचे एसजेफ विमानों में यात्रा न करने की चेतावनी दे रहा था। मीडिया आए दिन बम की धमकियों के चलते रद्द उड़ानों और उससे होने वाले नुकसान के आँकड़े अतिशयोक्ति अलंकार के साथ पेश कर रहा था जिससे भयानक रस का संचार हो रहा था। समाचारवाचक इतने उछलकूदयुक्त अभिनय के साथ समाचार सुनाते कि लगता अभी इनके मुखमंडल से बम फटेगा और बचाव के लिए ये खुद टीवी के डिब्बे से बाहर कूद पड़ेंगे। खैर, निकले। रात जयपुर में जिस ठौर गुजारना तय हुआ, उसके प्रबंधक ने परिचय जाना। आदमी को तो कौन पहचानता है? पहचानते हैं पद को, व्यवसाय को, जाति को, धर्म को, संगठन को, क्षेत्र को। हम उनके 'वह' लगते हैं। वे हमारे 'ये' लगते हैं। यहाँ 'वे', 'हम', 'ये' आदमी नहीं होते। होते हैं पद, व्यवसाय, रुतबे। हमने भी अपना रोजगार बताया। तो जैसा होना था हमें पहचान लिया गया। संस्मरण : टहनी पर टँगा चाँद / हेमंत कुमार [ लिंक https://www.apnimaati.com/2025/03/blog-post_80.html ]
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