'अपनी माटी' पत्रिका
'अपनी माटी' पत्रिका
June 13, 2025 at 01:07 AM
मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियाँ राजस्थानी जीवन और समाज तक पहुँचने का विश्वस्त ज़रिया हैं। कथा के इस आनुभूतिक प्रस्थान में जीवन के तमाम धूसर-बदरंग हिस्सों ,परंपरा की जड़ हदबंदियों, नाथ दी गयी वर्जनाओं, घुप्प अँधेरे में धकेल दिए गए स्वप्नों, अनचाहे रिश्तों की डोर की जकड़बंदियों तक पहुचने के उपक्रम में हमारी भेंट ‘कठपुतलियां’ की सुगना, ‘कुरजां’ की डाकण, ‘ठगिनी’ की गूंगी बना दी गयी कंचन, ‘कालिंदी’ की जमुना, ‘ओ मरियम’ की अरूसा, ‘रक्स की घाटी’ की गज़ाला, लुबना और गुलवाशा, ‘लापता तितली’ की मनाली, ‘केयर आफ स्वात घाटी’ की सुगंधा से होकर गुज़रना पड़ेगा। मैं इन कहानियों के चरित्रों को ‘कथा के एक पात्र के रूप में नहीं’ राजस्थान के गांवो, कस्बों और शहरों की अधिसंख्य गलियों, मुहल्लों के यथार्थरूप में देखता हूँ। हमारा समाज ‘कठपुतलियों के निर्माण की प्रयोगशाला’ है जिसमें जाने कितनी ‘सुगनाएं’ पैदा तो इंसान के रूप में होती हैं पर कठपुतली बना दी जाती हैं। इस मुल्क में काठ की पुतलियाँ कम हैं जीवित कठपुतलियाँ ज्यादा। हम सब हुनरमंद हैं इस कला में। हिन्दुस्तान के कितने ही गाँवों में आज भी कितनी ही सुगनाओं को उनके महतारी बाप रामकिशन जैसे पुरुषों के हांथों बियाह के नाम पर बेंच देते हैं। एक तो अपाहिज-विधुर रामकिशन तिस पर दो टाबरों का बोझ, इसके बावजूद ‘सुगना’ को ‘झोंकते हुए’ उसकी महतारी को एक बार भी अकरास नहीं हुआ ? एकबार भी उसकी छाती नहीं दरकी? यहाँ बहुत से सवाल गुंथें हैं जिनको सुलझाने के लिए इस बिंदु को आपके हवाले करता हूँ। [" शोध आलेख : कहानी के शिल्प में जीवन की व्याप्ति (मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानियाँ) / शशिभूषण मिश्र "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( अंक 57 ) ] लिंक 👉 https://www.apnimaati.com/2024/12/blog-post_527.html

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