RSS  संघ को समझना है तो शाखा में आओ......
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June 8, 2025 at 11:46 AM
"हिंदवी स्वराज्य की जयघोष: हिन्दू साम्राज्य दिवस विशेष" आज हिंदू साम्राज्य दिवस है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन इस पर्व को मनाया जाता है। हिंदू साम्राज्य दिवस को सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपनी स्थापना के बाद मनाना प्रारंभ किया। इस उत्सव को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को हिन्दू साम्राज्य, संस्कृति, सभ्यता और सौहार्द के प्रति जागरूक करना है। विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वर्ष में ६ उत्सव मनाता है जिसमें से एक उत्सव हिंदू साम्राज्य दिवस है। भारत का प्रत्येक नागरिक इस दिवस और उसके महत्व को जान सके इसीलिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इस गौरवशाली दिवस को अपने प्रमुख उत्सव में शामिल किया। हमेशा से ही त्योहार, दिवस और जयंती हमारे विचारों, और भावनाओं को जागृत करते आए है। हमारे समाज में हिंदू साम्राज्य दिवस के विषय में आज भी जानकारी का आभाव है, तो निश्चित ही आपके मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है की आखिर "हिंदू साम्राज्य दिवस" क्यों मनाया जाता है। देश की प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं के समान यह भी एक ऐतिहासिक घटना है जिसके विषय में हम सभी को जानकारी होना चाहिए। आज से ३५१ वर्ष पूर्व ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन, वर्ष १६७४ को महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था और उस दिन से हिन्दू साम्राज्य की पुनर्स्थापना हुई, इसलिए इस दिन को "हिंदू साम्राज्य दिवस" के रूप में मनाया जाता है। इतिहास के अनुसार, मध्यकालीन भारत के 6 शताब्दी में गुप्त वंश के पतन के बाद पुष्यभूति वंश का उदय हुआ, जिसके संस्थापक पुष्यभूति थे। इनके वंश में अनेकों वीर योद्धा पैदा हुए, जिन्होंने पुष्यभूति वंश के विजयी पताका को उत्तर से दक्षिण तक फहराया। इस वंश के अंतिम शासक हर्षवर्धन थे। जिन्हें अंतिम हिन्दू सम्राट माना जाता है। इनकी मृत्यु के पश्चात हिन्दू साम्राज्य का पतन हो गया। इतिहास के पृष्ठों को यदि पलटाकर देखा जाए तो सल्तनत काल से मुगल काल तक मुगलों, निजामों ने बड़ी क्रूरतापूर्वक हिंदुओं पर अत्याचार किए, जबरन धर्मांतरण करवाए, हमारी संस्कृति और मंदिरों को नष्ट भ्रष्ट किया। आधुनिक भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज का उदय हुआ और इस्लामिक आक्रान्ताओं के अत्याचारों से शिथिल पड़ चुके भारतीय हिन्दू समाज को नई चेतना के साथ जागृत, संगठित और पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से इन्होंने हिन्दू साम्राज्य को पुनर्स्थापित किया। शिवाजी महाराज का यह राज्याभिषेक विषम परिस्थितियों में सम्पन्न हुआ था, शिवाजी महाराज भोसले समुदाय से आते थे जिन्हें तत्कालीन ब्राह्माण समाज क्षत्रिय नहीं मानता था। ऐसी परिस्थिति में उत्तर भारत के काशी में एक गंगा भट्ट, जिनका नाम कहीं कहीँ गागा भट्ट भी मिलता है, ने उनकी वंशावली का अध्ययन किया और उनके क्षत्रिय होने की पुष्टि की। इस प्रकार हिंदू साम्राज्य की नींव स्थापित करने में गंगा भट्ट ने महती भूमिका अदा करी। उस देश, काल परिस्थिति में आत्म विस्मृत समाज, विघटित समाज, सांस्कृतिक विभेद चहुँओर दिखाई दे रहा था। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के समय तक इस राष्ट्र की सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण कर हिन्दू राष्ट्र की बहुआयामी उन्नति करने के जो प्रयास चले थे, वे बार-बार विफल हो रहे थे। इनके संरक्षण के लिए अनेकों राज्यों के शासकों का संघर्ष जारी था। साथ ही संत समाज द्वारा भी समाज में एकता लाने के प्रयास किए जा रहे थे। जन समूहों को एकत्रित एवं संगठित करने और उनकी श्रद्धा को बनाये रखने के लिए अनेक प्रकार के प्रयोग चल रहे थे। कुछ तात्कालिक तौर पर सफल भी हुए और कुछ पूर्ण विफल हुए। किन्तु जो सफलता समाज को चाहिये थी उसकी अंतिम परिणति छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक से पूर्ण हुई। 16 साल की छोटी उम्र में शिवाजी ने बीजापुर में तोड़ना के लिए पर कब्जा करने के साथ हिंदवी साम्राज्य की स्थापना के लिए एक सुनियोजित सैन्य अभियान शुरू किया। उन्होंने सिंहगढ़, राजगढ़, चाकन और पुरंदर के किलो को भी जल्द जीत लिया। शिवाजी ने किशोरावस्था से ही कड़ी मेहनत और अनुकरणीय समर्पण के साथ सैन्य रणनीति में महारत हासिल की। एक महान सामरिक योजनाकार के रूप में शिवाजी ने अपने राज्य में सैकड़ों किलो का निर्माण किया। निरंतर युद्ध के साथ उस दौर में पहाड़ी किले रक्षात्मक व्यूह रचना के लिए बहुत महत्वपूर्ण माने जाते थे, इन किलों ने शिवाजी के कितने ही सफल सैन्य अभियान के लिए धुरी के रूप में काम किया। सामरिक स्तर पर शिवाजी से सीखने लायक कई सबक है, शिवाजी को पहाड़ों जंगलों नदियों और बीहड़ों के क्षेत्र में महारत हासिल थी विशाल मुगल सेनाओं से सीधी मैदानी लड़ाई लड़‌ना मुश्किल था, शिवाजी ने इस बात को समझकर युद्ध में छापामार या गुरिल्ला युद्ध नीति की शुरुआत की। छापामार या गुरिल्ला युद्ध नीति शिवाजी महाराज को सैन्य युद्ध के इतिहास में अमर बनाते है। शिवाजी महाराज ने सन 1657 से ही अहमद नगर और जुन्नार के उदाहरणों से मुगलों से अपनी कुशल युद्ध क्षमता का लोहा मनवा लिया था। औरंगजेब ने शाइस्ता खान के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी। दोनों सेनाओ के बीच हुए इस युद्ध और शिवाजी के हमले में शाइस्ता खान घायल हुआ और उसकी विशाल सेना की पराजय हुई। शिवाजी ने 1657 के बाद अपनी नौसेना का निर्माण प्रारंभ किया। शिवाजी ने तटीय सुरक्षा के लिए कोंकण समुद्र तट पर स्थित किलो पर कब्जा किया जिसमें सिंधु दुर्ग एक ऐसा ही समुद्री किला था। शिवाजी ने अपनी छोटी पैदल सेना की सीमित क्षमता को समझकर नौसेना शक्ति को बढ़ाया और उसे और अधिक मजबूत बनाया। उन्होंने स्थानीय मछुआरों के साथ साथ पुर्तगाली नाविकों की भी अपनी नौसेना में नियुक्ति की। शिवाजी एक गंभीर महान सैन्य नायक थे, उन्होंने भारत की पारंपरिक सहिष्णुता और न्याय भावना आधारित प्रशासन की स्थापना करके अपनी प्रजा को गुणवत्तापूर्ण शासन प्रदान किया। छत्रपति शिवाजी का हिंदवी साम्राज्य की नींव रखना अंततः मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बना। आजाद हिन्द फौज के नायक सुभाषचंद्र बोस का कथन है की, "अगर भारत को आजाद होना है तो एक ही रास्ता है शिवाजी की तरह लड़ो" हिन्दू हृदय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रासंगिक विचार एवं आचरण का अनुसरण किए बिना हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना कर पाना असंभव सा प्रतीत होता है। कुशल रणनीतिकार कूटनीति में माहिर और भगवा के अनन्य उपासक शिवाजी महाराज का समूचा व्यक्तित्व सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए आज भी आदर्श है। #hindviswarajya #jaishivray #hinduempireday #gloryofbharat #swarajyamovement #shivajimaharaj #hindviswarajyadiwas #स्वराज्यदिवस #jaishivray #riseofhinduempire #hindurashtrakioar #rss100
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