SWAYAM SAINIK DAL_SSD
                                
                            
                            
                    
                                
                                
                                June 11, 2025 at 07:00 AM
                               
                            
                        
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    *मूँड़ मुँड़ाये हरि मिलें, सब कोई लेइ मुँड़ाय।*
    *बार-बार के मूँड़ते, भेड़ न बैकुंठ जाए।।*
    
    *अर्थ:* यदि सिर मुंडवाने से भगवान मिलते, तो सब कोई मुंडवा लेता। बार-बार मुंडवाने वाली भेड़ें भी बैकुंठ नहीं जातीं। यह दोहा दिखावे के लिए किए जाने वाले त्याग या वेशभूषा बदलने जैसी प्रथाओं का खंडन करता है।
*~ समाज सुधारक मूलनिवासी महानायक कबीर साहेब*
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