AAP Pulse
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May 17, 2025 at 09:45 AM
“मेरे बच्चों का सिस्टम पर से विश्वास उठ गया है” ये कहना है उस पिता का, जिसके 2 बच्चे उन 32 बच्चों में हैं जिन्हें DPS द्वारका ने स्कूल से निकाल दिया। ये बच्चे अपने पेरेंट्स से पूछते हैं कि: -आज कोर्ट में क्या हुआ -वो कल स्कूल जा सकेंगे या नहीं -टीचर उन्हें क्लास में बैठने देंगी की नहीं -वो अपने दोस्तों से मिल पाएंगे या नहीं -जब वो स्कूल वापस जायेंगे तो बाक़ी बच्चे उनका मज़ाक़ तो नहीं बनायेंगे… अब दिल्ली हाई कोर्ट का निर्णय चाहे जो हो, इन मासूम बच्चों के दिलों पर जो घाव लगा है, वो आसानी से नहीं भरेगा। ये बच्चे पढ़ना ही तो चाहते हैं न, उस स्कूल में जहाँ वो सालों से पढ़ रहे थे, जहाँ उनके दोस्त है!! और ये तंगदिल व्यवस्था इन 32 बच्चों को प्यार और सम्मान के साथ उनका स्कूल भी उन्हें नहीं दे सकती? शिक्षा का अधिकार क़ानून कहता है कि किसी भी बच्चे को 8 वीं क्लास तक की पढ़ाई पूरी होने तक किसी भी परिस्थिति में स्कूल नहीं निकाल सकता!! तो फ़िर 5 वीं में पढ़ने वाले बच्चे को DPS द्वारका ने कैसे स्कूल से निकाल दिया? दिल्ली की बीजेपी सरकार ने तो DPS द्वारका की जाँच के नाम पर डीएम को भेज कर राजनैतिक खानापूर्ति कर दी, पर बच्चे तो अपनी क्लास से बाहर ही रहे!! अगर दिल्ली की बीजेपी सरकार वाक़ई बच्चों की हितैषी होती, तो मजाल नहीं है कि कोई भी स्कूल बच्चों को इस तरह मानसिक यातना देने की सोचे भी। ज़्यादा पुरानी बात नहीं है जब दिल्ली बाल अधिकार आयोग ख़ुद इतना सक्षम था कि कोई प्राइवेट स्कूल किसी भी बच्चे को आँख न दिखा सके, और आज दिल्ली सरकार के डीएम भी “पॉवरलेस” हैं!! आख़िर क्या चाहते हैं ये बच्चे? पढ़ना, और पढ़ाई के लिए इतनी जद्दोजहद, इतनी बेबसी? लानत है ऐसी व्यवस्था पर!! और ये बातें करते हैं राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अमल करने की, भारत को विश्वगुरु बनाने की…

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