AAP Pulse
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May 24, 2025 at 06:01 PM
बड़ी बड़ी इमारत बनाते हुए मज़दूरों और उसके आस पास धूल में खेलते उनके छोटे छोटे बच्चों को देखकर अक्सर ये ख़्याल आता था: “ये इमारत, इसे बनाने वाले मज़दूरों या उनके बच्चों के लिए नहीं है, शायद वो कभी इसमें क़दम भी न रख सकेंगे” पर मनीष सिसोदिया के साथ दिल्ली सरकार के निर्माणाधीन स्कूलों की विजिट के दौरान ये भाव नहीं होता था। क्योंकि वहाँ खेलते हुए मज़दूरों के बच्चों की आँख में आँख डालकर हम ये कह पाते थे: “बच्चों आप के माँ- बाप जो आलीशान इमारत बना रहे हैं, वो आप के लिए है, आपका स्कूल है। यहाँ की एक एक ईंट आपकी ज़िंदगी को नई ऊँचाई देगी।" बस यही था दिल्ली शिक्षा क्रांति का मक़सद- मज़दूर का बच्चा मज़दूर बनने के लिए मज़बूर न हो!! वो भी सम्मान और समानता के साथ स्कूल जाए। वो भी अच्छे से पढ़े, खुलकर हँसे, खेले, बेख़ौफ़ बड़े बड़े सपने देखे और उसे पूरा करे। अब आज के हुक्मरान इसे न समझ सकें तो इसमें उनका कोई दोष नहीं है। इस भाव को समझने के लिए जो कलेजा चाहिए, वो है ही नहीं उनमें…
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