Shri NIKHIL
Shri NIKHIL
May 21, 2025 at 11:48 AM
आदि शंकराचार्य जी कहते हैं विष्णु का अर्थ है व्यापक! विष्णु व्यापनशील हैं। इसका क्या अर्थ हुआ? इसका अर्थ है जो सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त हैं और सारा ब्रह्माण्ड जिनमें व्याप्त हैं, वो विष्णु हैं। व्यापनशील विष्णु से ही यह सारा जगत आच्छादित है। विष्णु ही जगत का विस्तार हैं और विष्णु में ही जगत का लय है। वह जगत के कण-कण में है। आदि शंकराचार्य जी विष्णु सहस्रनाम भाष्य में लिखते हैं:- स्तुत्वा विष्णुं वासुदेवं, विपापो जायते नर:। विष्णो: सम्पूजनान्नित्यं, सर्वपापं प्रणश्यति।। अर्थात्: सर्वव्यापक वासुदेव विष्णु की स्तुति करने से मनुष्य निष्पाप हो जाता है। भगवान विष्णु का नित्यप्रति पूजन करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् 🙏 विष्णु सहस्रनाम का शंकर भाष्य अप्रतिम है।
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