
Yuvraaj Chandrakant Limbole
June 5, 2025 at 07:47 AM
"कानून के प्रचार से क्या होता है?"
"Right to Recall Party" के कार्यकर्ता अक्सर आपको कानून के ऊपर बात करते हुए नज़र आते हैं। इसका क्या कारण है?
जब अन्य कार्यकर्ता कहते हैं कि जन-जागरण करो, तब "Right to Recall Party" के कार्यकर्ता कहते हैं कि कानून लेकर आओ और समाधान उसी से होगा। वे उसी मुद्दे पर कानून आधारित रास्ता अपनाकर चुनाव भी लड़ लेते हैं।
तो अब तक इससे क्या फ़ायदा हुआ?
इसकी एक झलक आप इस पोस्ट में देख सकते हैं। "Right to Recall Party" के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में 70 में से 21 उम्मीदवार उतारे। इन सभी उम्मीदवारों ने अपने घोषणापत्र में साफ़-साफ़ कहा कि वे दिल्ली में आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान करेंगे।
तो क्या हुआ?
सिर्फ़ 3 से 4 महीने के अंदर BJP के मुख्यमंत्री को इस पर बयान देना पड़ा। उन्हें आवारा कुत्तों की समस्या पर एक्शन लेना पड़ा। साथ ही, दिल्ली हाईकोर्ट के जजों को भी यह कहना पड़ा कि अब दिल्ली को आवारा कुत्तों की समस्या से मुक्ति पाना जरूरी है।
ये बदलाव क्यों आया?
क्योंकि "Right to Recall Party" के कार्यकर्ता उस मांग को लेकर सीधे चुनाव मैदान में उतर गए।
असल में, लोकतंत्र में किसी भी मांग को मनवाने का सबसे सरल और प्रभावी तरीका यही है – कि आप उस मांग को लेकर चुनाव लड़ें। जब आप चुनाव में खड़े होते हैं, तो आपकी बात सुनने वालों की संख्या अपने आप बढ़ने लगती है और सामने वाली पार्टियों पर दबाव आता है कि वो अमुक मांग पर बोले और कार्यवाही करे वरना उनका वोट और कार्यकर्ता दोनों कम होना शुरू होंगे । अतः बड़ी पार्टियों को अमुक मांगो पर स्टैंड लेना पड़ता है ।
मेरा निवेदन है उन सभी लोगों से जो कार्यकर्ता JSM, बल्हारा BRC या अवेकन जैसे संस्थाओं से जुड़े हैं – कि अगर आप सोच रहे हैं कि सिर्फ 'सो कोल्ड जन-जागरण' जसे काम चल जाएगा, तो आप भ्रम में हैं।
समस्या का हल सिर्फ कानून बनाकर ही निकलेगा।
जो भी समस्या आपको लगती है – उसे लेकर जो भी अगला चुनाव आपके सामने आए, उसमें उसी मुद्दे को लेकर खड़े हो जाइए। समस्या अपने-आप हल होने लगेगी।
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