पथ प्रदर्शक (Path Pradarshak)
पथ प्रदर्शक (Path Pradarshak)
June 14, 2025 at 05:05 PM
*रोजगार रहित प्रेम वृक्ष* *ओह मेरी प्रेम प्रिये,* *कुछ कहना हूं चाहता, दामन को थामने से पूर्व,* कहो तो सुनाऊं अपनी व्यथा, झुकी नजर को हां समझूं या थामे कोमल हाथों को, व्यथित हृदय को हां समझूं या भय वश व्याकुल अधरों को, व्यग्रता से भयभीत मन या हिलोरे मारते तन को, विचलित हुए नैन नक्ष या होते कंपित लफ्जों को, कहूं कैसे ये विडंबना ,भयभीत हो रहा प्रतीत, परन्तु , प्रेम फलित की आहुति को , बताना होगा अतीत, अर्धांगिनी की बेला से पहले, सत्य प्रकाश से हो अभिषेक, जीवन की संगिनी से पहले, निश्चिंत हो विवेक, मन संचय के आडंबर से हो रहा मलिन, सो , आगमन से पूर्व हे! गृह स्वामिनी तुम हो चिंतन विहीन, इसलिए आवश्यक है यह व्यकव्य का आशय, भेद रहित हो नाते का परिचय, (2) *तो सुनो सखी तुम हृदय प्रिए,* *बतलाता हु व्यथा कथा मैं,* वास जहां मैं करता हु वह केवल आलय, रहते जहां दो देव जनक - जननी जिनका है वह सचिवालय, वो पूरक उस कुल के जिनका मै सेवक हूं, जो कुटुंब वृक्ष है उनका, मैं अंश उसी का हुं, जड़ को लगती चोट कभी भी दर्द यहां भी होता है, छलनी होती कभी भी टहनी आह! भर आती है, चोट कैसी भी हो तनों में मलहम मै हो जाता हूं, धूल थपेड़ों की मारो से, उनके छाया में बच जाता हूं, नहीं कोई उपजाऊ स्रोत फिर भी उपजा आता हु, न उर्वरकता का माध्यम न खाद्य भरपूर हो पाता हु, मैं उनकी छाया तले एक बोझ रूप में रहता हु, न बढ़ने की फिक्र में उज्र भांति में रहता हु, उन्हीं के पोषण पर पलता हु , थपेड़ों के झोंके खाता हूं, उन्हीं की नक्शे कदमों पर, ताल से ताल मिलाता हूं, जिनका ऋणी में हूं सदैव उनका उऋण न चाहता हु, उनके पैरों के धूल तले, भविष्य बाट न देखता हूं, कर विचार विमर्श अब वो प्रिय सखी, कैसे यह गमन सुफल होगा, निर्बाध प्रेम अपना प्रियतम, कैसे यह सुनिश्चित होगा, *#poetry_of_nowday_trend*❤️ @सम्राट साहू 🙏🏻
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