
'अपनी माटी' पत्रिका
June 15, 2025 at 12:28 AM
आज़ादी के बाद से ही हमारा देश पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से लगातार गुज़र रहा है। इस पुनर्निर्माण की प्रक्रियाएँ कागजों में बनाई तो जाती हैं लेकिन देश की एक बड़ी आबादी तमाम बुनियादी सुविधाओं से आज भी वंचित है। देश के तमाम बच्चे, बुजुर्ग, स्त्रियाँ, सामान्य जन सभी अपने अधिकारों के लिए शासन की ओर कातर दृष्टि से देखते रहते हैं। बाजारवाद, पूंजीवाद के प्रभाव में अमीर वर्ग निरंतर अमीर और गरीब वर्ग निरंतर गरीब होता जा रहा है। गरीब, वंचित समुदाय के लोगों के पास मंहगे प्राइवेट स्कूलों और अस्पतालों को देने के लिए फीस ही नहीं होती है तो वो उनकी सुविधाएं कैसे उठा सकेंगे। कहना ना होगा कि इन सबके साथ ही पूंजीवाद और बाजारवाद ने हमारी प्रकृति और हमारे पर्यावरण को भी हमसे छीनना शुरू कर दिया है। शहरीकरण की प्रक्रिया ने हमारी नदियों को हमसे छीन लिया है। सरकार नदियों के संरक्षण एवं उनके पुनर्जीवन के लिए हर साल लाखों करोड़ का बजट ले आती है। लेकिन नदियों की अवस्था में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा। मलबों, कचरों और गंदे पानी से भरे सीवेज हमारी नदियों में सीधे गिरते हैं। कुछ जगहों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए हैं जो कि इन नदियों को प्रदूषित होने से रोकने में नाकाफी हैं। देश की कई सारी नदियां विलुप्त होने के कगार पर हैं, न जाने कितनी ही नदियों का पानी प्रदूषण के कारण काला हो गया है। ऐसी स्थिति में हमें इन नदियों के बचाने के बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। ये सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता है कि सरकार द्वारा इन नदियों के संरक्षण एवं उनके पुनर्जीवन के लिए निर्धारित बजट का सही तरीके से इस्तेमाल हो रहा है।
[" शोध आलेख : कविता, नदी एवं जीवन की गतिमयता : राकेश कबीर की कविताएँ / अनिरुद्ध कुमार "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( अंक 57 ) ]
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