'अपनी माटी' पत्रिका
'अपनी माटी' पत्रिका
June 16, 2025 at 01:27 AM
केदारनाथ सिंह की कविताओं में आरंभ से ही प्रकृति का आलंबन रहा है। वे अपने नन्हे से गुलाब के लिए सब्ज जमीन की तलाश करते दिख पड़ते हैं। केदारनाथ सिंह ने प्रकृति को – जैसा कि आरंभिक महाकाव्यों में प्रकृति को विभाव की कोटि में आलंबन मानकर किया गया वैसी आसक्ति से नहीं देखा है। प्रकृति से आलंबन का तात्पर्य है प्रकृति के उन तत्वों से जुड़ना जो हमारी भावनाओं, विचारों और अनुभवों को प्रभावित करते हैं। यह प्रकृति के सौंदर्य, शांति और जीवनदायिनी शक्ति से जुड़ने की प्रक्रिया है। आलंबन के अर्थ में पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नदी, समुद्र, झील, पहाड़, घाटियाँ, सूरज, चंद्रमा, तारे, हवा, बारिश और मौसम ये सभी आते हैं । इसके जुड़ने से हमें अपने जीवन में संतुलन, शांति और सुख की भावना मिलती है। यह हमें अपने आसपास की दुनिया को समझने और उसके साथ जुड़ने में मदद करता है, और हमें अपने जीवन को अधिक अर्थपूर्ण और सार्थक बनाने में सहायता करता है। केदारनाथ सिंह की बेचैनी और छटपटाहट इस दुनिया की या यूँ कहें कि ब्रह्मांड की मरम्मत करने की जुगत में है। उनकी कविताओं में पृथ्वी को बचाने की उद्दाम लालसा है। वे बाघ, सारस, कुत्ता-कुतिया, बैल, कौआ, गिलहरी आदि के प्रति ही अपनी जागरूक चेतना का उल्लेख नहीं करते, अपितु जीव अस्तित्व के आसन्न संकट के बोध को झरनाठ बरगद, घास, महुआ, मकई, नदी, पानी, आलू, धान, दाने आदि में भी संवेदना व्यक्त करते हैं । [" शोध आलेख : केदारनाथ सिंह के काव्य में मानवेतर प्राणी और उसकी संवेदना / रजनीश कुमार "अपनी माटी के इस आलेख को पूरा पढ़ने के लिए दिए गए लिंक पर जाएं ( अंक 57 ) ] लिंक 👉 https://www.apnimaati.com/2024/12/blog-post_604.html
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