'अपनी माटी' पत्रिका
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June 18, 2025 at 12:46 PM
हिंदी भाषा और साहित्य की निर्मिति में राजस्थानी का विशिष्ट योगदान है। हिन्दी के ‘आदिकाल’ के परिसीमन में आने वाली ‘पुरानी हिन्दी’ की बहुत सी रचनाएँ आज प्राप्त हैं। वस्तुतः मैथिली को छोड़कर हिंदी परिवार की किसी भी भाषा की ऐसी कोई प्राचीन कृति सामने नहीं है, जिसके आधार पर आदिकाल का ढाँचा खड़ा किया जा सकता हो। केवल पुरानी राजस्थानी ही एक ऐसी भाषा है जिसका गद्य और पद्य दोनों प्रकार का साहित्य प्रभूत परिमाण में उपलब्ध है। राजस्थान के डिंगळ साहित्य में भारतीय संस्कृति, दर्प और शृंगार की अनेक अर्थच्छवियाँ मौज़ूद है। इतिहास पर दृष्टिपात करें तो स्वतंत्रता पूर्व राजस्थान 21 देशी राज्यों में विभाजित था। सर्वप्रथम जार्ज टॉमस ने इसे ‘राजपूताना’ कहा और तदनन्तर 1886 में कर्नल टॉड ने इस राज्य के इतिहास में इसे “राजस्थान”1 नाम दिया। यहाँ की भाषा और उसके इतिहास की बात करें तो राजस्थान के परगने और अनेक अंचलों में बोली जाने वाली बोलियों का अपना विशिष्ट साहित्य है। कहीं यह साहित्य वीरस्तुति काव्य (प्रशस्ति) के रूप में मिलता है, कहीं यह आध्यात्निक गलियारों से गुजरता है तो कहीं वेलि-ख्यात के रूप में तो कहीं यह अपने अनूठे प्रेमल स्वरूप में उपलब्ध है। राजपूताने में मेवाड़, मारवाड़, महोबा, चित्तौड़, बूँदी, जयपुर, नीमराणा, रीवा, पन्ना और भरतपुर राज्यों में विपुल मात्रा में चारण-साहित्य का रचाव हुआ। यद्यपि राजस्थानी साहित्य वीर-रस प्रधान है परन्तु भाषावैज्ञानिक अध्ययन करते हुए इसके प्रमाण में अन्य प्रवृत्तिगत साहित्य भी मुखर रूप से दिखाई देता है। राजस्थानी भाषा का अंश सिद्धों की उद्धृत रचनाओं में भी है, जिनकी भाषा को देशभाषा-मिश्रित अपभ्रंश या पुरानी हिंदी कहा गया, जो उस समय गुजरात-राजपूताना, ब्रजमंडल से लेकर बिहार तक पढ़ने-लिखने की शिष्ट भाषा थी। कबीर की साखियों की भाषा खड़ी बोली राजस्थानी मिश्रित सामान्य ‘सधुक्कड़ी’ भाषा है। इस प्रकार राजस्थान में रचित साहित्य साहित्य की विविध प्रवृत्तियों को साथ लेकर चलता है। “राजस्थान का साहित्य विदेशी आक्रमण से देश, धर्म और जाति की रक्षा करने तथा संरक्षण के कर्तव्य के लिए असीम बलिदान करने की सक्रिय भावना से प्रारंभ होता है। इस भावना की अभिव्यक्ति की सारी प्रेरणा युद्ध, बलिदान तथा स्वधर्म के लिए सर्वस्व का उत्सर्ग कर देने की संस्कारगत उमंग से प्राप्त हुई है, अतः युद्ध की वीरोल्लासिनी हलचलों के बीच राजस्थान का साहित्य सारी जाति को त्याग और बलिदान का संदेश देता है।”2 वस्तुतः राजस्थान का इतिहास भारत की वीरता और जातीय अस्मिता का इतिहास रहा है। इसीलिए राजस्थान की महत्ता में आज भी यह गाया जाता है- *शोध आलेख : हिन्दी भाषा और साहित्य की निर्मिति में राजस्थानी का योग / विमलेश शर्मा* [ लिंक 👉 https://www.apnimaati.com/2025/03/blog-post_16.html ]
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