Raah_e_Eiman [راہِ ایمان]
Raah_e_Eiman [راہِ ایمان]
June 15, 2025 at 08:00 AM
*👉 ईद-ए-गदीर की सच्चाई क्या है?* नबी करीम ﷺ जब *आख़िरी हज (हज्जतुल विदा)* करके मदीना लौट रहे थे, तो रास्ते में एक जगह *गदीर ख़ुम* नाम की जगह पर रुक कर एक ख़ुत्बा (बयान) दिया। वहाँ आपने हज़रत अली رضي الله عنه के बारे में फरमाया: *"من كنت مولاه فعلي مولاه"* *जिसका मैं दोस्त हूँ, अली भी उसका दोस्त है।* 🌟 ये बात क्यों कही गई? दरअसल हज़रत अली رضي الله عنه को हज से पहले यमन भेजा गया था वहाँ के टैक्स वगैरह जमा करने के लिए। उन्होंने सब ठीक से बाँटा, लेकिन कुछ लोगों ने नबी ﷺ से शिकायत कर दी। नबी ﷺ ने साफ़ किया कि अली ने जो किया, वो बिल्कुल सही किया, बल्कि उनका हक़ और भी ज़्यादा था। फिर आप ﷺ ने लोगों से कहा कि अली से मोहब्बत रखो और दिल से बुराई निकाल दो। ताकि सबको पता चल जाए कि अली नबी के खास हैं, उनसे मोहब्बत रखना ईमान का हिस्सा है। 🌟 क्या इस का मतलब है कि हज़रत अली رضي الله عنه खलीफा बनने वाले थे? *नहीं।* नबी ﷺ ने वहां हज़रत अली رضي الله عنه को खलीफा (उत्तराधिकारी) बनाने का ऐलान नहीं किया था। बल्कि जो लोग हज़रत अली رضي الله عنه से नाराज़ थे, उन्हें यह समझाया कि अली का मक़ाम ऊँचा है और वह अल्लाह और उसके रसूल को प्यारे हैं। *ईद-ए-गदीर* कब और किसने शुरू की? इस खुत्बे की वजह से शिया लोग 18 ज़िल-हिज्जा को *ईद-ए-गदीर* मनाते हैं। लेकिन यह ईद नबी ﷺ ने नहीं बताई, और न ही किसी सहाबी ने इसे मनाया। ईद-ए-गदीर की शुरुआत बहुत बाद में *351 हिजरी* में एक *शिया हाकिम "मुअज़्ज़ अद-दौला"* ने की थी। इस दिन को ईद कहकर बग़दाद में जश्न मनवाया गया। 📌 क्या इस्लाम में ये ईद है? *इस्लाम में सिर्फ दो ईदें हैं:* 1. ईद-उल-फ़ित्र 2. ईद-उल-अज़हा इनके अलावा कोई तीसरी ईद शरीअत में नहीं है। इसलिए *ईद-ए-गदीर मनाना इस्लामी नहीं*, बल्कि बाद में बनाई गई रस्म है। ❗ एक अहम बात: 18 ज़िल-हिज्जा को ही तीसरे खलीफा *हज़रत उस्मान رضي الله عنه* की शहादत भी हुई थी। दुश्मन ए सहाबा इस दिन को खुशी के तौर पर मनाते हैं, जो गलत और निंदनीय बात है। *✅ क्या करें?* अगर आपके किसी जानने वाले ने "ईद-ए-गदीर मुबारक" जैसा कोई स्टेटस डाला हो, तो उन्हें प्यार से समझाएं कि: * इस्लाम में ऐसी ईद का कोई सबूत नहीं है। * किस वजह से दुश्मन ए इस्लाम मनाते है? * इस दिन हज़रत उस्मान رضي الله عنه की शहादत की खुशी में शिया ये मनाते है। * हमें अली رضي الله عنه से मोहब्बत करनी चाहिए, लेकिन शिया अफ़सानों को सच मानना गलत है। * असली ईमान यह है कि सभी सहाबा और अहले बैत से मोहब्बत रखें। * दुश्मन ए इस्लाम और दुश्मन ए सहाबा رضي الله عنه का मकसद सादा अवाम को गुमराह करना है!
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