Raah_e_Eiman [راہِ ایمان]
Raah_e_Eiman [راہِ ایمان]
June 16, 2025 at 01:23 PM
*‼इसराइल- ईरान जंग में हम यक़ीनन इज़राइल को तबाह होते देखना चाहते हैं...!* लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि *ईरान* ने पिछले कुछ दशकों में *20 लाख से ज्यादा सुन्नी मुसलमानों* का कत्ल किया है। उसने सुन्नी मुसलमानों की ताकत को पूरी तरह से खत्म कर दिया, जिससे *इज़राइल* इतना मजबूत हो गया। अगर ईरान सच में *इस्लाम* का साथी होता, तो वह उस समय *इज़राइल* को निशाना बनाता, न कि *हमस, हलब, दारा, अदलिब, यमन और इराक* के सुन्नी मुसलमानों से खून की होली खेलता। जब अपनी रक्षा की बात आई, तो उसने बड़े-बड़े मिसाइलों का इस्तेमाल किया। ईरान ने सिर्फ अपने *खुमैनी के शिया धर्म* को फैलाने के लिए *इस्लाम* और *सुन्नी मुसलमानों* को जो नुकसान पहुँचाया, वह *इज़राइल* भी नहीं पहुँचा सका। उनके पास आज भी ऐसी *वीडियो* हैं जिनमें कहा जाता है कि *हम मक्का पर काबिज़ होंगे*, *तो काबा को गिरा देंगे*, और *सुन्नियों का सफ़ाया करेंगे*। जबकि *इज़राइल* *कुद्स* (यरुशलम) को गिराने का ख्वाब देखता है, ईरान ने *मक्का* को गिराने का ख्वाब देखा था, जिसे अल्लाह ने नाकाम बना दिया। *अलहम्दुलिल्लाह* *राफ़िज़ी और उनके अक़ीदे* ईरान के *राफ़िज़ी* (शिया मुसलमान) क़ुरआन को सही से नहीं समझते। वे कहते हैं कि *सहाबा* (रज़ि.) ने अपनी मर्जी से क़ुरआन को बदल दिया था, जो कि बहुत बड़ी *गलतफहमी और गुस्ताखी* है। ये लोग *हज़रत अबू बकर* और *हज़रत उमर* (रज़ि.) को नहीं मानते, और उनका *नमाज़*, *क़लिमा* अलग होता है। सवाल यह है कि ऐसे लोग *इस्लाम* के हिस्से कैसे हो सकते हैं? *इस्लाम* वही है जिसमें *अबू बकर* और *उमर* (रज़ि.) का इंतेखाब रहेगा, और राफ़िज़ी इसमें शामिल नहीं हो सकते, क्योंकि *क़ियामत तक इस्लाम का रास्ता* *अबू बकर* और *उमर* (रज़ि.) का है। *इमाम इब्न तैमिया का बयान* *इमाम इब्न तैमिया* (रह.) ने राफ़िज़ी (शिया) को *यहूदियों के गधे* कहा था, जो *इस्लाम* और *सुन्नी मुसलमानो* को नुकसान पहुँचाने का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि कभी-कभी गधे अपने मालिक को भी *कष्ट पहुँचाते हैं*, और कभी मालिक गधे को पीटते हैं। यही सब चलता रहता है। *ईरान-इज़राइल जंग पर विचार* आज कुछ लोग *ईरान-इज़राइल जंग* को *इस्लाम और अकीदे की जंग* कह रहे हैं। लेकिन *इस्लाम* और *अकीदे की हिफाज़त* के लिए हम *हज़रत अली (रज़ि.)*, *अबू बकर (रज़ि.)*, *उमर (रज़ि.)*, और *अम्मी जान अयशा (रज़ि.)* को गालियाँ नहीं दे सकते। *इस्लाम* की जंग तभी लड़ी जाती है जब हम *अल्लाह के हुक्मो* को समझें, न कि किसी *प्रोपेगंडा* के तहत। *अबू लूलू का मज़ार और ईरान का सपोर्ट* आज भी *ईरान* में *अबू लूलू*(जो *हज़रत उमर (रज़ि.)* का क़ातिल था) उसका मजार है। उसे सरकारी सपोर्ट मिलता है, और वह वहां का इज़्ज़तदार शख्सियत बना हुआ है। यह बहुत शर्मनाक है, क्योंकि वही शख्स था जिसने *हज़रत उमर (रज़ि.)* को मारकर *इस्लाम* की सबसे महान शख्सियत की गुस्ताखी किया। *क़ुरआन की आयत और अल्लाह का वादा* क़ुरआन में अल्लाह ने कहा है: *"وَ كَذٰلِكَ نُوَلِّیْ بَعْضَ الظّٰلِمِیْنَ بَعْضًا بِمَا كَانُوْا یَكْسِبُوْنَ"* (सूरह अल-अनाम, आयत 129) अल्लाह का यह वादा है कि वह *ज़ालिमों* को एक दूसरे पर मुसल्लत करेगा, ताकि वे अपने कर्मों का फल भुगतें। इसलिए क़ुरआन मुकद्दस को समझने की कोशिश करो तब आपको मालूम होगा *“अकीदा और देशभक्ति और फिरका वारियत के डिफेंस की जंग में क्या फर्क होता है...?* जान लो हमारी दोस्ती और दुश्मनी की बुनियाद तौहीद है... *अल्हम्दुलिल्लाह* ______________________________ *Follow Channel👇* https://whatsapp.com/channel/0029VaXBomMKGGGGFTl0Ci2F
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