Raah_e_Eiman [راہِ ایمان]
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June 17, 2025 at 10:46 AM
‼️ *"आज ही के दिन मिस्र (इजिप्ट) के महान इख़वानी नेता हाफ़िज़ मोहम्मद मर्सी को शहीद किया गया था"* हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि *आज ही के दिन* अरब शासकों की दूसरी बड़ी गद्दारी की वह घटना सामने आई थी, जिसने पूरे इस्लामी जगत को छलनी कर दिया था। आज फिलिस्तीन के मज़लूम उस नुकसान को भुगत रहे हैं। पहली बार जब अरब शासकों ने ख़िलाफ़त-ए-उस्मानिया के पतन में अंग्रेज़ों का साथ देकर गद्दारी की थी, और दूसरी बार जब उन्होंने अमेरिका की मातहती और इस्राईल की मंज़ूरी के लिए 2013 में एक बार फिर इस्लामी उम्मत की पीठ में छुरा घोंपा। इन दोनों गद्दारियों के ज़ख्म से इस्लामी दुनिया आज भी लहूलुहान है। *17 जून 2019 को मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति और इख़वानुल मुस्लिमीन के नेता हाफ़िज़ मोहम्मद मर्सी की मौत* की जो खबर सामने आई, जिसे इख़वान ने “शहादत” का नाम दिया, वह असल में उसी गद्दारी की एक दर्दनाक परिणति थी, जिसकी शुरुआत 2013 में मर्सी की गिरफ्तारी, बर्खास्तगी और तख्तापलट से हुई थी। मोहम्मद मर्सी, मिस्र में “अरब बसंत” (Arab Spring) के पहले फल और फूल थे। उन्होंने जालिम और तानाशाह हुस्नी मुबारक की तानाशाही सत्ता को हराकर 2012 में इख़वानुल मुस्लिमीन के नेतृत्व में एक इस्लामी सरकार क़ायम की थी। यह सरकार एक साथ अरब मुनाफिकों और अमेरिकी ताकतों के लिए खतरा बन गई थी। *नतीजा यह हुआ कि सऊदी अरब और अमेरिका की साझी साज़िश के तहत मर्सी को सत्ता से हटाकर, यहूदी एजेंट जनरल अब्दुल फत्ताह अल-सीसी को मिस्र की कमान सौंप दी गई।* क्योंकि इख़वानुल मुस्लिमीन का नाम ही इस्लाम दुश्मन ताक़तों के लिए दहशत बन चुका था। उनकी हुकूमत इस्राईल के लिए एक ख़तरे से कम नहीं थी। *2013 में सीसी के नेतृत्व में मिस्र की सेना ने मर्सी को गिरफ़्तार कर लिया और सत्ता से बेदख़ल कर दिया।* मिस्र दोबारा से इस्राईल के पिट्ठुओं का मोहरा बन गया। और आज जब हम ग़ज़ा और फिलिस्तीन में कत्लेआम देख रहे हैं, तो सवाल उठता है: क्या अगर मिस्र में इख़वान की हुकूमत होती, तो क्या इस्राईल यह सब करने की हिम्मत करता? *मिस्र को इस्राईली चंगुल से आज़ाद कराने की कोशिश करने वाली पार्टी इख़वानुल मुस्लिमीन पर देशव्यापी कार्रवाई हुई,* न जाने कितने ही दावात देने वाले, चिंतक और कार्यकर्ता जेलों में मार डाले गए और हज़ारों अब भी सलाखों के पीछे हैं। *इख़वान का नाम इस्लामी इतिहास में उन सच्चे, क्रांतिकारी और कुर्बानी देने वाले जवानों की जमात के रूप में दर्ज है,* जिन पर इस्लाम दुश्मनों — पश्चिमी दानवों और अरब मुनाफिकों — ने सर्वसम्मति से हमला किया। मोहम्मद मर्सी मिस्र के पहले चुने गए लोकतांत्रिक राष्ट्रपति थे। जब जमीनी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के ज़रिए इस्लाम के सिपाही सत्ता में पहुंचे, तो पश्चिमी लोकतंत्र ने अपना असली, क्रूर और साम्राज्यवादी चेहरा दिखा दिया। *सुलतान अब्दुल हमीद को हटाने से लेकर मोहम्मद मर्सी की सरकार गिराने तक, पश्चिमी लोकतंत्र ने बार-बार अपने ताग़ूती और दज्जाली मिज़ाज को ज़ाहिर किया है।* *इसलिए ज़रूरी है कि हम अपनी नई पीढ़ी को यह इतिहास याद दिलाएं।* यह हमारी असली तारीख़ है। वो उम्मत जो अपने बहादुरों को नहीं भूलती, उसमें फिर नए मर्सी और नए अय्यूबी पैदा होते रहते हैं। लेकिन जो उम्मत अपने मुफक्किर, शहीदों और मुजाहिदों को भुला देती है, वह गानों-बाजों और तमाशों में खो जाती है — और फिर उसमें तमाशबीनों की भरमार हो जाती है। *इख़वान, इस्लामी दुनिया के उन बेलौस और पाक सिपाहियों का नाम है* जिन्होंने मिस्र से लेकर फिलिस्तीन तक और पूरे अरब जगत में इस्लामी जागृति का संदेश दिया। मर्सी उन शहीदों के सरदार हैं, जिन्हें छह साल तक ज़हर देकर धीरे-धीरे शहीद किया गया। हमें पूरा यक़ीन है कि यह शहादत बेकार नहीं जाएगी — *बहार ज़रूर आएगी, इंशा'अल्लाह।* हम मर्सी शहीद को सलाम-ए-अक़ीदत पेश करते हैं। हम दुआ करते हैं कि उनकी रौशन क़ब्र की अल्लाह हिफ़ाज़त करे, हमें उनकी मज़ार पर फ़ातिहा पढ़ने की रूहानी तौफ़ीक़ दे, और उनके मिशन को आगे बढ़ाने के लिए हमें क़ुबूल फरमाए। आमीन। *मुहम्मद मर्सी ज़िन्दाबाद!* *इख़वानुल मुस्लिमीन पायंदाबाद!* ______________________________ *Follow Channel👇* https://whatsapp.com/channel/0029VaXBomMKGGGGFTl0Ci2F
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