MUFTI ABDUSSUBHAN MISBAHI
MUFTI ABDUSSUBHAN MISBAHI
June 13, 2025 at 12:55 PM
*حج کی فضیلت* عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ : سَمِعْتُ النَّبِيَّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: مَنْ حَجَّ لِلَّهِ فَلَمْ يَرْفُثْ وَلَمْ يَفْسُقْ رَجَعَ كَيَوْمَ وَلَدَتْهُ أُمُّهُ“• (صحيح البخاري، كتاب الحج، باب فضل الحج المبرور،حدیث نمبر:1521) ــــــــــــــــــــــــــــــــــــ حضرت ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:جس نے اللہ کے لیے حج کیا، اور اس دوران نہ کوئی فحش بات کی، نہ گناہ کا ارتکاب کیا، تو وہ (حج سے) ایسا پاک ہو کر لوٹتا ہے، جیسے اُس دن تھا جب اُس کی ماں نے اُسے جنم دیا۔ ــــــــــــــــــــــــــــــــــــ جب انسان دنیا میں آنکھ کھولتا ہے تو فطرتِ سلیمہ، ذہن کی پاکیزگی، اور روح کی صفائی اس کا سرمایہ ہوتی ہے۔ مگر زندگی کی گردش، نفسانی خواہشات، اور گناہوں کی گرد اُسے اس خالص مقام سے دُور لے جاتی ہے۔ ایسے میں حج وہ خدائی نظامِ تربیت ہے جو انسان کو نئے سرے سے زندہ کرتا ہے۔ اس کے باطن کو دھو دیتا ہے، اور روح کو اُس نورِ فطرت سے ہم آہنگ کر دیتا ہے جس پر وہ پیدا کیا گیا تھا۔ یہی مفہوم ہمیں اس حدیثِ مبارک میں ملتا ہے، جس میں فرمایا گیا کہ جو شخص اللہ کے لیے حج کرے، اور اس دوران فحش کلامی، شہوانی خیالات یا گناہ و معصیت سے بچا رہے، تو وہ ایسا لوٹتا ہے جیسے ماں کے پیٹ سے آج ہی پیدا ہوا ہو۔ یعنی گناہوں سے یکسر پاک! ماہرینِ نفسیات کا کہنا ہے کہ انسان کے اندر ایک "ری سیٹ" کا نظام موجود ہے، جہاں وہ کچھ مخصوص تجربات یا حالات کے بعد ایک نئے شعور کے ساتھ اُبھر سکتا ہے۔ حج، دراصل ایک روحانی ری سیٹ ہے، جو انسان کو اس کی اصل فطرت کی طرف واپس لاتا ہے۔ جب انسان ایک مخصوص روحانی کیفیت میں مکمل انہماک اور خلوص کے ساتھ کوئی عبادت انجام دیتا ہے۔ خصوصاً ایسی عبادت جس میں جسمانی مشقت، اجتماعیت، اور جذباتی لگاؤ شامل ہو تو دماغ میں موجود امیگڈیلا اور ہائپو تھیلمس میں خاص کیمیائی تبدیلیاں رونما ہوتی ہیں، جو ذہن کو ڈی ٹاکس کر کے اسے روحانی سکون مہیا کرتی ہیں۔ یہی وہ روحانی و سائنسی تطہیر ہے جسے رسول اللہ ﷺ نے "ماں کے پیٹ سے پیدا ہونے" کے کنایے سے تعبیر فرمایا ہے۔ یعنی ایسا پاکیزہ، اور گناہوں سے مبرّا! یہ حدیث حج کی روحانی عظمت، گناہوں کی مغفرت اور قلبی تطہیر پر دلالت کرتی ہے۔ جو شخص خالص نیت سے اللہ کے لیے حج ادا کرتا ہے، اور شریعت کے آداب و حدود کی پابندی کرتا ہے، اس کے سابقہ گناہ ایسے مٹ جاتے ہیں جیسے ایک نومولود بچہ ہر گناہ سے پاک ہوتا ہے۔ یہ حج، محض عبادت نہیں، بلکہ زندگی کی ایک نئی شروعات کا موقع ہے۔ ----- *हज की फजी़लत* हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया: जिस ने अल्लाह के लिए हज किया, और उस दौरान न कोई फुह्श बात की, न कोई गुनाह किया, तो वह (हज से) ऐसा पाक होकर लौटता है जैसे उस दिन था जब उसकी मां ने उसे जन्म दिया। (सहीह-बुखा़री शरीफ़, हदीस नंः 1521) ---- जब इंसान दुनिया में आँख खोलता है तो फितरत-ए-सलीमा, ज़ेहन की पाकीज़गी और रूह की सफ़ाई उसका सरमाया होती है। मगर ज़िंदगी की गर्दिश, नफ़सानी ख्वाहिशात और गुनाहों की गर्द उसे उस ख़ालिस मक़ाम से दूर ले जाती है। ऐसे में हज वह ख़ुदाई निज़ाम-ए-तर्बियत है जो इंसान को नए सिरे से ज़िंदा करता है। उसके बातिन को धो देता है, और रूह को उस नूर-ए-फ़ितरत से हम-आहंग कर देता है जिस पर वह पैदा किया गया था। इसी मअनी की झलक हमें इस हदीस-ए-मुबारक़ में मिलती है, जिसमें फ़रमाया गया कि जो शख़्स अल्लाह के लिए हज करे, और इस दौरान फुह्श कलामी, शहवानी खयालात या गुनाह व मआसियत से बचा रहे, तो वह ऐसा लौटता है जैसे मां के पेट से आज ही पैदा हुआ हो यानी गुनाहों से बिल्कुल पाक! माहिरीन-ए-नफ़्सियात (Psychologists) का कहना है कि इंसान के अंदर एक “रीसेट” का निज़ाम मौजूद है, जहाँ वह कुछ ख़ास तजुर्बात या हालात के बाद एक नए शऊर के साथ उभर सकता है। हज, दरअस्ल एक रूहानी रीसेट है, जो इंसान को उसकी असल फ़ितरत की तरफ वापस ले आता है। जब इंसान एक ख़ास रूहानी कैफ़ियत में मुकम्मल इनहिमाक और इख़लास के साथ कोई इबादत अंजाम देता है ख़ास तौर पर ऐसी इबादत जिसमें जिस्मानी मेहनत, इज्तिमाअियत, और जज़्बाती लगाव शामिल हो तो दिमाग़ में मौजूद अमीगडाला (Amygdala) और हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) में ख़ास कीमियाई तब्दीलियाँ (chemical changes) पैदा होती हैं, जो ज़ेहन को डिटॉक्स कर के उसे रूहानी सुकून अता करती हैं। यही वह रूहानी और साइंटिफ़िक तज़किया है जिसे रसूलुल्लाह ﷺ ने "माँ के पेट से पैदा होने" के किनाए से बयान फ़रमाया यानी ऐसा पाकीज़ा और गुनाहों से बिल्कुल मुअर्राफ़! यह हदीस हज की रूहानी अज़मत, गुनाहों की मग़फ़िरत, और क़ल्बी तज़किया पर दलालत करती है। जो शख़्स ख़ालिस नियत से अल्लाह के लिए हज अदा करता है और शरीअत के आदाब व हुदूद की पाबंदी करता है, उसके साबक़ा गुनाह ऐसे मिट जाते हैं जैसे एक नो-मौलूद बच्चा हर गुनाह से पाक होता है। यह हज, महज़ इबादत नहीं, बल्कि ज़िंदगी की एक नई शुरुआत का मौक़ा है।
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