MUFTI ABDUSSUBHAN MISBAHI
MUFTI ABDUSSUBHAN MISBAHI
June 16, 2025 at 01:45 PM
*مسجد حرام و مسجد نبوی میں نماز کا ثواب* عَنْ جَابِرٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: صَلَاةٌ فِي مَسْجِدِي أَفْضَلُ مِنْ أَلْفِ صَلَاةٍ فِيمَا سِوَاهُ، إِلَّا الْمَسْجِدَ الْحَرَامَ، وَصَلَاةٌ فِي الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ أَفْضَلُ مِنْ مِائَةِ أَلْفِ صَلَاةٍ فِيمَا سِوَاهُ“• (سنن إبن ماجه، كتاب إقامة الصلاةِ والسنة فيها، باب فضل الصلاةِ في المسجد الحرام ومسجد النبي،حدیث نمبر:1406) ــــــــــــــــــــــــــــــــــــ حضرت جابر رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا: میری اس مسجد (یعنی مسجد نبوی) میں ایک نماز، دیگر تمام مساجد کے مقابلے میں ایک ہزار نمازوں سے افضل ہے، سوائے مسجد حرام کے۔ اور مسجد حرام (یعنی خانہ کعبہ) میں ایک نماز، باقی تمام مساجد کے مقابلے میں ایک لاکھ نمازوں سے افضل ہے۔ ــــــــــــــــــــــــــــــــــــ زمین پر کچھ مقامات ایسے ہوتے ہیں جہاں زمین کے ذرے سجدہ کرتے ہیں، اور آسمان کے فرشتے قطار باندھ کر اترتے ہیں۔ کچھ مقام ایسے ہوتے ہیں جہاں وقت کی رفتار بدل جاتی ہے، اعمال کا وزن بڑھ جاتا ہے، اور ایک سجدہ، ایک لاکھ سجدوں کا ہم پلہ ہو جاتا ہے۔ یہ وہ مقامات ہیں جہاں”قربِ رب “کے دروازے پوری طرح کھل جاتے ہیں۔ انسانی فطرت یہ ہے کہ وہ زیادہ نفع والے کام کو ترجیح دیتا ہے، زیادہ اجر والے عمل کو اپناتا ہے، اور کم وقت میں زیادہ کامیابی چاہتا ہے۔ اسی فطری تقاضے کے مطابق شریعتِ مطہرہ نے بھی ہمیں وہ ”روحانی شارٹ کٹس“ عطا فرمائے جن سے ہم کم وقت میں زیادہ اجر کما سکتے ہیں، اور ان میں سرفہرست مساجدِ ثلاثہ ہیں۔ ایک عام انسان ایک دن میں بیس رکعت نفل پڑھے، تو بیس ہی لکھی جاتی ہیں۔ لیکن یہی بیس رکعت اگر مسجد نبوی میں پڑھی جائیں، تو بیس ہزار لکھی جاتی ہیں! اور اگر مسجد حرام میں پڑھی جائیں تو بیس لاکھ رکعتوں کے برابر ثواب ملتا ہے۔ یہ اعداد و شمار کوئی مبالغہ نہیں، بلکہ ربانی وعدہ ہے، جو نبی رحمت ﷺ کی زبانِ حق سے بیان ہوا۔ سائنس کہتی ہے کہ بعض جگہوں پر ”مقناطیسی فیلڈ“ زیادہ طاقتور ہوتی ہے۔ اسی طرح قرآن و حدیث بتاتے ہیں کہ بعض مقاماتِ مقدسہ پر روحانی کشش اور انوار و تجلیات کا نزول اس قدر زیادہ ہوتا ہے کہ وہاں کیے گئے اعمال کا اثر کئی گنا بڑھ جاتا ہے۔ یہ نہ صرف ثواب میں اضافہ ہے، بلکہ روحانی تطہیر، قلبی سکون، اور نورانیت میں بھی فرق آتا ہے۔ بالکل ایسے ہی جیسے سورج کے قریب چیز زیادہ گرم ہوتی ہے، اسی طرح رب کے مقرب مقامات پر نیکیوں کی حرارت بھی زیادہ اثر انگیز ہو جاتی ہے۔ مسجد حرام، مسجد نبوی اور مسجد اقصیٰ میں نماز کا ثواب دیگر مساجد کے مقابلے کئی گنا زیادہ ہے۔ اور خاص طور پر مسجد حرام میں ایک نماز کا ثواب ایک لاکھ نمازوں کے برابر ہونا، محض عبادت کا معاملہ نہیں، بلکہ رب کی مہربانی اور اپنے گھر کی عظمت کا اعلان ہے۔معلوم ہوا کہ عبادت کے ساتھ عبادت کا مقام بھی اہم ہے۔ انسان اگر تھوڑا سا سفر کر کے، کچھ مشقت اٹھا کر، ان مقدس مقامات پر جائے، تو اس کے اعمال کا وزن آسمانی ترازو میں کئی گنا بڑھ جاتا ہے۔ گویا یہ محض عبادت نہیں، عبادت کا” ضرب اعشاری نظام“ ہے۔ ------ *मस्जिदे हराम, मस्जिदे नबवी में नमाज़ का सवाब* सहाबी-ए-रसूल हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया:मेरी इस मस्जिद (यानि मस्जिदे नबवी) में एक नमाज़, दीगर तमाम मस्जिदों के मुक़ाबले में एक हज़ार नमाज़ों से अफ़ज़ल है, सिवाए मस्जिदे हराम के। और मस्जिदे हराम (यानि ख़ाना क़ाबा) में एक नमाज़, बाक़ी तमाम मस्जिदों के मुक़ाबले में एक लाख नमाज़ों से अफ़ज़ल है। (इब्ने माजा, हदीस नंः 1406) ----- ज़मीन पर कुछ मक़ाम ऐसे होते हैं जहाँ ज़मीन के ज़र्रे सज्दा करते हैं, और आसमान के फ़रिश्ते क़तार बाँध कर उतरते हैं। कुछ जगहें ऐसी होती हैं जहाँ वक़्त की रफ़्तार बदल जाती है, आमाल का वज़न बढ़ जाता है, और एक सज्दा, एक लाख सज्दों के बराबर हो जाता है। ये वो मुक़द्दस मक़ामात हैं जहाँ "क़ुर्बे-रब" के दरवाज़े पूरी तरह खुल जाते हैं। इंसानी फ़ितरत ये है कि वो ज़्यादा नफ़ा वाले काम को तर्जीह देता है, ज़्यादा अज्र वाले अमल को अपनाता है, और कम वक़्त में ज़्यादा कामयाबी चाहता है। उसी फ़ितरी तक़ाज़े के मुताबिक़ शरीअते मुतह्हरा ने भी हमें वो "रूहानी शॉर्ट-कट्स" अता फ़रमाए जिनसे हम कम वक़्त में ज़्यादा अज्र कमा सकते हैं, और इनमें सर-ए-फ़हरिस्त मसाजिदे सलासः हैं। एक आम इंसान अगर एक दिन में बीस रकअत नफ़्ल पढ़े, तो बीस ही लिखी जाती हैं। लेकिन यही बीस रकअत अगर मस्जिदे नबवी में अदा की जाएं, तो बीस हज़ार लिखी जाती हैं! और अगर मस्जिदे हराम में पढ़ी जाएं, तो बीस लाख रकअतों के बराबर सवाब मिलता है। ये अंकारे कोई मुबालग़ा नहीं, बल्कि रब्बानी वादा है, जो नबी-ए-रहमत ﷺ की ज़बान-ए-हक़ से बयान हुआ। साइंस कहती है कि कुछ जगहों पर "मक्नातीसिय ताक़त" (magnetic field) ज़्यादा होती है। इसी तरह क़ुरआन व हदीस बताते हैं कि कुछ मुक़द्दस मक़ामात पर रूहानी कशिश और अनवार व जलालात का नुज़ूल इस क़दर ज़्यादा होता है कि वहाँ किए गए आमाल का असर कई गुना बढ़ जाता है। ये सिर्फ़ सवाब में इज़ाफा नहीं, बल्कि रूहानी तन्हीरी, क़ल्बी सुकून और नूरानियत में भी ज़ाहिर फ़र्क़ लाता है। ठीक उसी तरह जैसे सूरज के क़रीब चीज़ ज़्यादा गर्म होती है, उसी तरह रब के मुक़र्रब मक़ामात पर नेकियों की हरारत भी ज़्यादा असरअंदाज़ हो जाती है। मस्जिदे हराम, मस्जिदे नबवी और मस्जिदे अक़्सा में नमाज़ का सवाब दीगर मस्जिदों के मुक़ाबले में कई गुना ज़्यादा है। और ख़ास तौर पर मस्जिदे हराम में एक नमाज़ का सवाब एक लाख नमाज़ों के बराबर होना, महज़ इबादत का मामला नहीं, बल्कि रब की मेहरबानी और अपने घर की अज़मत का ऐलान है। मालूम हुआ कि इबादत के साथ इबादत का मक़ाम भी अहम है। इंसान अगर थोड़ा सा सफ़र करके, कुछ मुश्किलें उठाकर इन मुक़द्दस मक़ामात पर जाए, तो उसके आमाल का वज़न आसमानी तराज़ू में कई गुना बढ़ जाता है। गोया ये सिर्फ़ इबादत नहीं, बल्कि इबादत का "ज़र्बे आशारिया निज़ाम" (multiplication system) है।
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