Bhajan Ganga
Bhajan Ganga
June 18, 2025 at 03:18 AM
https://bhajanganga.com/bhajan/lyrics/id/34926/title/sati-nari-ka-sat-balwan सती नारी का सत बलवान जिन से हार गए भगवान सुनिएगा जरा गौर से वो ये सती कहानी वो ब्रम्हणी वो लक्छमी वो गौरा थी रानी ब्रम्हा महेश विष्णु से यू कर के बहाने बन ठन के चली तीनो सती मिल के नहाने जा पहुंची छोर सागर तीनो सती नारी अस्नान लगी करने वो हो हो के उघारी इतने में टहलते हुए नारद जी आगये देखा नहाते नग्न बिचारे लजा गए हुए नारद बड़े परेशान जिस से हार गए भगवान मुंह फेर के नारद मुनि ने अपना यू कहा यू नग्न नहाना कहो किस वेद में लिखा एक बताता हु तुम्हे आज देवियों सतियो का पहला सत है आराम लाज देवियों अनसुईया को तो जानती होगी जरूर तुम हो उसकी नही देवियों चरणों की धूल तुम तुम से उत्तम है उसकी सान जिससे हार गए भगवान नारद मुनि की सुनके ये जहर भरी बोली तीनो सती के मन में लगी जिस तरह गोली घर जाके आपने पतियों से कहने लगी कथन सैया जो हमे चाहो तो मानो मेरा वचन अंनसुइया का सतभंग जो तुम ना करो पिया ताज देंगे प्राण फोड़ के पत्थर पे सर पिया तीनो वो तिरिया हठ से लाचार होगए अंनसुइया के घर जाने को तैयार होगए हुए भगवान बड़े परेशान अब हार गए भगवान साधु का भेस धर के चले तीनो देवता बालू से अपने अपने कमंडल को भर लिया जा पहुंचे तीनो साधु अंनसुइया के द्वारे भूखे है कई रोज से ये मिल के पुकारे अनसुईया का ये सुनके वचन दिल तड़प उठा अनसुईया ने कर जोड़ के तीनो से ये कहा आसन लगाओ बाबा मैं भोजन बनाऊंगी खाने की जो इच्छा है वो फ़ौरन बनाऊंगी भूखे जाए ना मेरे मेहमान जिससे हार गए भगवान अनसुईया के सुन के खुसामद भरा वचन तीनो ही महात्मा हुए दिल में बड़े मगन आगे बढ़ा के तीनो कमंडल लगे कहने इन चल अगन के बालू का हलवा बने मानो हमारी सर्त खिलाना है जो खाना साधु के आशीर्वाद से तुम भरलो खजाना अनसुईया ने फिर सच का करिश्मा दिखा दिया बालू जो कमंडल में था हलुआ बना दिया सच के पलड़े में तुलता ईमान जिससे हार गए भगवान फिर कहने लगी हलुआ है तैयार लीजिए किस बात की है देरी प्रभु अब तो लीजिए बोले वो और एक है सर्त हमारी कपड़े उतारो तन के और होजाओ उधारी फिर होके नग्न वेश में तीनो को बिठाओ हलुआ फिर अपने हाथ से तीनो को खिलाओ अंनसुइया मारे क्रोध के गुस्से में जल गई साधु है या सैतान मन में सोचने लगी ईश्वर की किया ध्यान तो उसको हुई खबर ये तीनो साधु ब्रम्हा विष्णु और है संकर छलने आए है मेरा ईमान जिससे हार गए भगवान अनासुइया ने फिर सत का करिश्मा दिखा दिया तीनो को छै महीने का बालक बना दिया बालक बने उन्हें तो कई दिन गए गुजर ब्रम्हा महेश विष्णु जब वापस ना गए घर तब उनकी तीनो नारिया चिंतित बहुत हुई अपने पति को ढूंढने घर से निकल गई जा पहुंची तीनो नारिया अनासुईया के द्वारे केहने लगी आए क्या पति देव हमारे अनासिया बोली कौन हो आई हो कहां से तीनो सती ने मिल के कहा दबती जुवां से ये ब्रम्हनी ये लक्ष्मी ये पार्वती है ब्रम्हा महेश विष्णु हम तीनो के पति है अनासुईय गई पहचान जिससे हार गए भगवान अनसुईया बोली साधु तीन आए है कोई पहचान लो यही है या फिर दूसरे कोई ले जाके तीनो साथ में पलना दिखा दिया तीनो सती को देख के अचरज बहुत हुआ अनसुईया बोली सोचती हो क्या बताओ तुम सतवंती हाेतो सच का करिश्मा दिखाओ तुम हुई तीनो बड़ी परेशान जिससे हार गए भगवान तीनो ने हाथ जोड़ के अनसुईया से कहा अपराध होगया है बेहन करदो अब छमा अंनसुइया ने भगवान को सुमिरा जो एकबार आए है असली रूप में होने लगी जैकार ब्रम्हा महेश विष्णु ने बोले यही बानी अनसुईया तेरे सत का जग में कोई नही सानी फिर हशते हुए लौट गए तीनो ही प्राणी खंजर कलम को रोकी हुई खत्म कहानी अनसुईया तू जग में महान जिस से हार गए भगवान
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