अमृत कथा
June 19, 2025 at 01:25 AM
*अमृत कथा*
*।। एक प्रेरक कथा ।।*
सुमना ने अपने पति सोम शर्मा से कहा- ‘प्रियतम ! जिस मनुष्य को जितना धन मिलना है, उसको बिना परिश्रम किये ही उतना धन मिल जाता है और जब धन जाने का समय आता है, तब कितनी ही रक्षा करने पर भी वह चला जाता है- ऐसा समझकर आपको धन की चिन्ता नहीं करनी चाहिये। वास्तव में धर्म के पालन से ही पुत्र और धन की प्राप्ति होती है। धर्म का आचरण करने वाले मनुष्य ही संसार में सुख पाते हैं। इसलिये आप धर्म का अनुष्ठान करें। जो मनुष्य मन वाणी, और शरीर से धर्म का आचरण करता है, उसके लिये संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं रहती।’
ऐसा कहने के बाद सुमना ने विस्तार से धर्म का स्वरूप तथा उसके अंगों का वर्णन किया। उसको सुनकर सोम शर्मा ने प्रश्र किया कि ‘तुम्हें इन सब गहरी बातों का ज्ञान कैसे हुआ ?’
सुमना ने कहा- ‘आप जानते ही हैं कि मेरे पिताजी धर्मात्मा और शास्त्रों के तत्त्व को जानने वाले थे, जिससे साधु लोग भी उनका आदर किया करते थे। वे खुद भी अच्छे-अच्छे सन्तों के पास जाया करते तथा सत्संग किया करते थे। मैं उनकी एक ही बेटी होने के कारण वे मेरे पर बड़ा स्नेह रखा करते तथा अपने साथ मुझे भी सत्संग में ले जाया करते थे। इस प्रकार सत्संग के प्रभाव से मुझे भी धर्म के तत्त्व का ज्ञान हो गया।’ यह सब सुन कर सोम शर्मा ने पुत्र की प्राप्ति का उपाय पूछा।
सुमना ने कहा कि ‘आप महामुनि वसिष्ठ जी के पास जायँ और उनसे प्रार्थना करें। उनकी कृपा से आपको गुणवान् पुत्र की प्राप्ति हो सकती है।’
पत्नी के ऐसा कहने पर सोम शर्मा वसिष्ठ जी के पास गये। उन्होंने वसिष्ठ जी से पूछा कि ‘किस पाप के कारण मुझे पुत्र और धन के अभाव का कष्ट भोगना पड़ रहा है ?’
वसिष्ठ जी ने कहा- ‘पूर्वजन्म में तुम बड़े लोभी थे तथा दूसरों के साथ सदा द्वेष रखते थे। तुमने कभी तीर्थयात्रा, देवपूजन, दान आदि शुभकर्म नहीं किये। श्राद्ध का दिन आने पर तुम घर से बाहर चले जाते थे। धन ही तुम्हारा सब कुछ था। तुमने धर्म को छोड़कर धन का ही आश्रय ले रखा था। तुम रात-दिन धन की ही चिन्ता में लगे रहते थे। तुम्हें अरबों-खरबों स्वर्ण मुद्राएँ प्राप्त हो गयीं, फिर भी तुम्हारी तृष्णा कम नहीं हुई, प्रत्युत बढ़ती ही रही। तुमने जीवन में जितना धन कमाया, वह सब जमीन में गाड़ दिया। स्त्री और पुत्र पूछते ही रह गये; किंतु तुमने उनको न तो धन दिया और न धन का पता ही बताया। धन के लोभ में आकर तुमने पुत्र का स्नेह भी छोड़ दिया। इन्हीं कर्मों के कारण तुम इस जन्म में दरिद्र और पुत्रहीन हुए हो। हाँ, एक बार तुमने घर पर अतिथि रूप से आये एक विष्णुभक्त और धर्मात्मा ब्राह्मण की प्रसन्नता पूर्वक सेवा की। उनके साथ तुमने अपनी स्त्री सहित एकादशी व्रत रखा और भगवान् विष्णु का पूजन भी किया। इस कारण तुम्हें उत्तम ब्राह्मण-वंश में जन्म मिला है। विप्रवर ! उत्तम स्त्री, पुत्र, कुल, राज्य, सुख, मोक्ष आदि दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति भगवान् विष्णु की कृपा से ही होती है।अतः तुम भगवान् विष्णु की ही शरण में जाओ और उन्हीं का भजन करो..!!’
*🙏🏾🙏🏻🙏जय श्री कृष्ण*🙏🏿🙏🏽🙏🏼
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