
सुलेखसंवाद
June 13, 2025 at 04:06 AM
अहमदाबाद विमान दुर्घटना: अधूरी उड़ानें, अनगिनत कहानियाँ
अहमदाबाद में हुई विमान दुर्घटना महज एक किस्मत खराब होने की घटना नहीं है। तकनीकी असफलता भी इसमें थी—
यह उन अनगिनत कहानियों का सामूहिक दुखांत है, जिन्हें शायद हम कभी जान भी न पाएँ। हर नाम, हर टिकट, हर सीट पर एक जीवन था—एक स्वप्न, एक मंज़िल, एक परिवार, एक भविष्य।
एक परिवार सालों की तैयारी और संघर्ष के बाद अब इंग्लैंड बसने जा रहा था। कितने ही लोग पहली बार विदेश जा रहे होंगे, किसी बेहतर कल की तलाश में। कुछ ऐसे भी होंगे जो केवल लौट रहे थे—भारत दर्शन कर चुके विदेशी, या अपने घर लौटते प्रवासी। और क्रू? वे महज़ विमान परिचालक नहीं थे, वे भी किसी घर के कमाने वाले, किसी की माँ किसी के बेटे, किसी बच्चे के पिता, किसी भाई की बहन थीं।
यह हादसा एक झटके में इन सभी कहानियों को अधूरा छोड़ गया।
हमारे भीतर शोक है, लेकिन यह शोक मात्र आँसू नहीं—यह एक गहरी टीस है, उन आवाज़ों के लिए जो अब कभी नहीं सुनाई देंगी, उन यात्राओं के लिए जो कभी पूरी नहीं होंगी।
इस त्रासदी ने एक बार फिर हमें झकझोर दिया है:
शोक का समय है हम सब संत्रास में हैं पर फिर भी कुछ विचार होने ही चाहिए कि यह दुबारा न हो, कुछ सवाल कुछ चिंतन कुछ चेतना
क्या हम अपनी व्यवस्थाओं में इंसानी जीवन की संवेदनशीलता को पर्याप्त महत्व दे रहे हैं?
क्या सुरक्षा जांच के प्रति हम संवेदन शील है हमारी व्यवस्था संवेदन शील है?
क्या उत्तरदायित्व की भावना अब केवल मुआवज़े और प्रेस रिलीज़ पर आकर सीमित रह जानी चाहिए?
दुर्घटनाएँ केवल लोहे के टुकड़े और जले हुए ईंधन की कहानियाँ नहीं होतीं—वे उस सामाजिक और नैतिक गिरावट की भी कहानी होती हैं, जहाँ व्यवस्थाएँ जवाबदेही से मुँह मोड़ने लगती हैं।
हम सिर्फ शोक न करें,सोचें उन सवालों पर जो तकलीफदेह तो हैं पर जरूरी हैं।
जो लोग इस विमान में सवार थे, वे केवल यात्री नहीं थे—वे हमारे समय की संभावनाएँ थे।
उनकी मौत केवल एक हादसा नहीं, हमारी व्यवस्थागत चूक का परिणाम भी है।
हम हर बार की तरह चुप न रहें।
हर उड़ान केवल उड़ान न हो—एक ज़िम्मेदारी भी हो।
हर टिकट केवल यात्रा का दस्तावेज़ न हो—एक जीवन की गारंटी भी हो।
यह सब उन लोगों के लिए
जो उस दिन उड़ान भर रहे थे,
अपने जीवन की किसी नई शुरुआत की ओर और उन सबके लिए भी,
जो अब पीछे रह गए हैं—एक रिक्तता के साथ, जो कभी भरी नहीं जाएगी।
मैंने देखा
एक बूँद सहसा
उछली सागर के झाग से
रँगी गई क्षण भर
ढलते सूरज की आग से।
मुझको दीख गया :
सूने विराट् के सम्मुख
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से!
दिवंगत आत्माओं के लिए प्रार्थना श्रद्धांजलि🙏🏻🙏🏻
🙏
😢
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