
सुलेखसंवाद
June 13, 2025 at 05:05 AM
विमान दुर्घटना के पीछे की अनदेखी:
अहमदाबाद विमान दुर्घटना की दिल दहला देने वाली तस्वीरें और जानकारियाँ सामने आ रही हैं, और इसके साथ ही एक गहरी व शर्मनाक लापरवाही की कहानी भी उजागर हो रही है—एक ऐसी लापरवाही, जिसकी ज़िम्मेदारी सीधे तौर पर एयर इंडिया पर जाती है।
न केवल DGCA (नागर विमानन महानिदेशालय) ने समय-समय पर चेतावनियाँ दी थीं, बल्कि एयरलाइन को कई बार शोकॉज़ नोटिस भी भेजे गए। अचानक हुए निरीक्षणों में भी विमान की सुरक्षा और कार्यक्षमता को लेकर गंभीर सवाल उठे थे। इन सबके बावजूद इन्हें नजरअंदाज़ किया गया। अब यह भी सामने आ रहा है कि एयरलाइन के CEO के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा—यह सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की असफलता और मानवीय जीवन के प्रति असंवेदनशीलता का प्रतीक है।
इस हादसे को और पीड़ादायक बनाता है एक और पहलू—यह कि एयर इंडिया अब भारत के सबसे सम्मानित और विश्वसनीय संस्थानों में से एक, टाटा समूह के स्वामित्व में है। ऐसे में सवाल उठता है:
क्या रतन टाटा ने कभी ऐसी लापरवाही की इजाज़त दी होती?
अगर उनके नेतृत्व में यह हादसा हुआ होता, तो क्या वे केवल बयान जारी कर चुप बैठ जाते?
रतन टाटा जिस संवेदनशीलता, उत्तरदायित्व और नैतिक साहस के लिए जाने जाते हैं, अब वही आदर्श उनके समूह को अपनाना होगा। यह सिर्फ कॉर्पोरेट संकट नहीं है, यह नैतिकता का संकट है—एक संस्थान के आत्मसम्मान और जनविश्वास का संकट।
एयर इंडिया के CEO कैम्पबेल विल्सन को अब पद से हटना ही होगा।
उनके निर्णय—संभवतः मुनाफे की दौड़ में सुरक्षा को ताक पर रखना—241 ज़िंदगियाँ लील गया। यही निर्णय एयर इंडिया और टाटा ब्रांड की छवि पर हमेशा के लिए एक काला धब्बा बन गया है।
इस भयानक हादसे में केवल एक व्यक्ति जीवित बचा है—अब वही जीवित गवाह है इस त्रासदी का। उसके शब्दों में वह सच्चाई होगी जिसे हम सबको सुनना चाहिए।
सवाल यह नहीं है कि जीवित बचा विवेक क्या कहेगा—सवाल यह है:
क्या एयर इंडिया और टाटा समूह, सच में उस आवाज़ को सुनेंगे?
क्या वे केवल मुआवज़ा देकर भूल जाने का रास्ता चुनेंगे, या आत्म-मंथन और उत्तरदायित्व का मार्ग अपनाएँगे?
अब वक़्त है, कि आदर्शों की बात करने वाले, उन्हें जीकर भी दिखाएँ।
अब वक़्त है, कि टाटा केवल एक ब्रांड नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी साबित हो।
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