
सुलेखसंवाद
June 15, 2025 at 03:59 AM
“धर्म का अवशेष या अंधविश्वास का प्रचार — हादसे की राख में पवित्रता का स्वांग”
जब किसी विमान दुर्घटना में सैकड़ों जानें चली जाती हैं, और उसके मलबे में से एक धार्मिक पुस्तक जली नहीं मिलती — तो हमारे समाज का ध्यान सुरक्षा नीति, प्रशासनिक विफलताओं या मानवीय त्रुटियों पर नहीं, उस ‘चमत्कार’ पर चला जाता है। टीवी चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ आती है — “देखिए, सब कुछ जल गया, लेकिन गीता/कुरान/बाइबिल सही-सलामत है!”
यह वही समाज है जो हर मंदिर/मस्जिद/गिरिजाघर में सीसीटीवी लगवाकर ईश्वर की निगरानी करता है, लेकिन विमान तकनीकी जांच की बजाए धार्मिक ग्रंथ की अक्षतता को दैवी प्रमाण मान लेता है। क्या यह अध्यात्म है?
नहीं, यह पाखंड है — सुनियोजित, मनोरंजनात्मक, और जन मानस को तर्कशक्ति से दूर धकेलने वाला पाखंड।
📜
सदियों से धर्म ने मनुष्य को आत्म-निरीक्षण, करुणा और न्याय की ओर उन्मुख करने की कोशिश की है। भगवद्गीता युद्ध के मैदान में खड़ी होकर भी शांति का पाठ पढ़ाती है। पर जब हम इन पुस्तकों को ‘अग्नि में न जलने’ की प्रतियोगिता में शामिल कर देते हैं, तो हम इनके मूल संदेश को नष्ट कर रहे होते हैं — किताबें नहीं जलतीं, विचार जलाए जा रहे होते हैं।
🧠
यह ‘महिमा’ का आख्यान उस समाज में पनपता है जहाँ विफलताओं का बोझ जनता पर डालने के लिए धर्म का सहारा लिया जाता है।
ट्रेन पलट जाए, तो बोला जाता है कि किसी साधु को ठेस पहुँचाई गई थी। भवन गिर जाए, तो कहा जाता है कि ज़मीन पर देवता का अपमान हुआ था।
यह रणनीति है — दुख को आध्यात्मिक बना दो, ताकि व्यवस्था से कोई सवाल न पूछे।
यह ‘पवित्रता की राजनीति’ है जो हर त्रासदी में एक प्रतीक तलाशती है और जनता को उस प्रतीक के पीछे बाँध देती है।
“धर्मग्रंथ नहीं जले — इससे यह साबित होता है कि विमान को भगवान उड़ा रहे थे और उन्हीं से टेक्निकल फॉल्ट हो गया।”
या
“वो धार्मिक पुस्तक जलती तो शायद नागर विमानन निदेशालय(डीजीसीए) को जवाब देना पड़ता, अब जवाब तो ईश्वर ही देंगे।”
इसीलिए, धर्म जब विवेक के साथ हो, तो वह मोक्ष की ओर ले जाता है। लेकिन जब वह अंधविश्वास के साथ हो, तो वह हमें विमानों के मलबे में ‘ईश्वर की सेल्फी’ ढूँढने वाले प्राणी बना देता है।
✍️
धर्म की वास्तविक महिमा तब होगी जब हम उसकी शिक्षा को बचाएँ — न कि उसके पन्नों को।
जब अगली दुर्घटना हो — और होगी, अगर व्यवस्था यूँ ही लापरवाह रही — तो पवित्रता की तलाश मलबे में नहीं, जिम्मेदार संस्था/व्यक्ति की गर्दन पर होनी चाहिए।
❤️
👍
❓
7