𝗗𝗔𝗜𝗟𝗬 𝗜𝗦𝗟𝗔𝗠𝗜🕊
June 17, 2025 at 05:04 PM
हुजूर ﷺ की 23 साल की ज़िंदगी से आम इंसानियत में जो इन्क़लाब आया था, उसकी नज़ीर पूरी तारीख़-ए-इंसानियत पेश नहीं कर सकती, ये इन्क़लाब सिर्फ़ एक सियासी इन्क़लाब नहीं था, ये सिर्फ़ एक मआशी इन्क़लाब भी नहीं था, ये मिल्ली और क़ौमी इन्क़लाब भी नहीं था, बल्कि ये एक हमा-जहत इन्क़लाब था, जिसने एक नई तहज़ीब व तमद्दुन की बुनियाद रखी। एक ख़ूबसूरत और महज़ब तरीन मुआशरे को वजूद बख़्शा, सियासत को अख़लाक़ियात की बुलंदी तक पहुंचाया, मआशियात को मज़बूत और महक़म कर दिया, और पूरे आलम-ए-इंसानियत में अमन-ओ-अमान और इन्साफ़ का दौर-दौरा हो गया, वो एक सुनहरा दौर था जब इस्लाम का तोता बोलता था।
फिर मुसलमानों की शोकत पर ज़वाल आया, उनकी अज़मत के दिन पुराने हो गए, और देखते ही देखते हालात यहां तक पहुंच गए कि मुसलमान दूसरी क़ौमों के लिए निवाला-ए-तर बन गए। ये सिर्फ़ इस लिए हुआ कि क़रन-ए-अव्वल में मुसलमान वाक़ई मुसलमान थे, वो इस्लाम पर पूरे तौर पर अमल कर रहे थे, इस लिए उनकी शख़्सियत ख़ुद उनके लिए भी मुफ़ीद थी और पूरी इंसानियत के लिए भी नफ़ा-बख़्श, चुनांचे रब तआला ने उनको इमामत-ए-आलम का मंसब सौंपा हुआ था, फिर जब मुसलमान मुसलमान न रहे, उन्होंने पूरे इस्लाम पर अमल करना छोड़ दिया और उनका वजूद अक़वाम-ए-आलम के लिए नफ़ा-बख़्श नहीं रह गया तो अल्लाह ने आलम की इमामत व क़ियादत उनके हाथों से लेकर दूसरों को सौंप दी।
अब इस आख़िरी दौर में अल्लाह के कुछ बंदे फिर क़रन-ए-अव्वल के मुसलमानों की याद ताज़ा कर रहे हैं, वो मुकम्मल इस्लाम पर अमल पैरा हैं, वो इस्लाम के हर शोबे को सीने से लगाए हुए हैं, सिर्फ़ ज़ाहिरी शक्ल-ओ-सूरत के बजाय वो अंदर से हक़ीक़ी मुसलमान हैं, इस लिए हुज़ूर अकरम ﷺ के पाक इरशादात की रोशनी में इस बात का कामिल यक़ीन है कि इन जियालों और इस्लाम के इन वफ़ादारों के ज़रिये ही इस्लाम की अज़मत और शोकत के दिन एक बार फिर आने वाले हैं। ये फ़लिस्तीनी मुजा_हदीन का वही गिरोह है जिसकी तरबियत अज़ीम मुरब्बी जद-ओ-जहद शैख़ अहमद यासीन रह. ने की थी, और ग़ालिबन जिसके बारे में अहादीस ए मुबारका में साफ़-ओ-सरीह पेशीनगोई की गई है:
_*"मेरी उम्मत का एक गिरोह बराबर अपने दुश्मन पर ग़ालिब और अपने दीन पर साबित क़दम रहेगा, जो लोग उनकी मुख़ालिफ़त करेंगे, वो उनको नुक़सान नहीं पहुंचा पाएंगे, सिवाए थोड़ी बहुत मुसीबतों के जो उन पर आ जाएंगी। यहां तक कि उनके पास अल्लाह का हुक्म आ जाए, वो इसी तरह रहेंगे।" सहाबा ने पूछा: वो कहां होंगे? तो हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया: "बैत-उल-मक़दिस और उसके आस-पास।"*_
(अहमद: 22320, अल-मुअज्ज़म अल-कबीर लिल-तबरानी: 7643, मसनद अल-शामीयीन: 860)
✍🏻 हजरत मौलाना खलीलूर्रहमान सज्जाद नोमानी दामत बरकातुहु
अलफुरकान सप्टेंबर 2024
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