
𝗗𝗔𝗜𝗟𝗬 𝗜𝗦𝗟𝗔𝗠𝗜🕊
June 18, 2025 at 04:48 PM
*वतन-ए-इक़ामत से एक दिन के लिए सफर-इ-शर‘ई के बाद नमाज़ का हुक्म*
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*⭕ आज के मसाइल ⭕*
मैं सफर-ए-हज में था, २८ दिन क़रीब मक्काः में था। उसी दौरान २४वें दिन ताइफ़ गया तो मक्काः दोबारा आने के बाद वतन-ए-इक़ामत बाक़ी रहेगा?
*🔵 जवाब 🔵 ➖⤵️*
حامدا و مصلیا و مسلم
वतन-ए-इक़ामत सिर्फ सफर करने से बातिल नहीं होता, बल्कि सफर बसूरत-ए-ईरतिहाल से बातिल होता है। यानि उस वक़्त बातिल होगा जब वतन-ए-इक़ामत से जाते वक़्त अपना सामान वग़ैरा भी साथ ले जाकर वतन-ए-इक़ामत को बिलकुल छोड़ दिया जाए, जिस से ये समझा जाये के उस शख्स का ईरादा अब दोबारा यहाँ आने का नहीं है।
जब्के आपकी सूरत में चुनांचे आपका मक्काः मुकर्रमः दोबारा आने का ईरादा था और साज़ो-सामान मक्काः में ही मौजूद था, इस लिए ताइफ़ की तरफ सफर करने से आपकी मक्काः की इक़ामत बातिल नहीं हुई। वापस आने के बाद भी आप बादस्तूर मुक़ीम ही गिना जाएंगे।
و في البحر:
"ولو کان له أهل بالکوفة وأهل بالبصرة، فمات أهله بالبصرة لا تبقی وطناً له، وقیل: تبقی وطناً، لأنها کانت وطناً له بالأهل والدار جمیعاً، فبزوال أحدهما لا یرتفع الوطن، کوطن الإقامة یبقی ببقاء الثقل وإن أقام بموضع آخر"
(باب المسافر، ج:2، ص:136، ط: سعید)
दारुल-इफ्ता:
दारुल-इफ्ता जामिआ-तूल-उलूम अल-इस्लामि, बिन्नोरी टाऊन, फतवा नंबर: १४४०१२२००८०६
तारीख-ए-इज्रा: ३०-०८-२०१९
و الله اعلم بالصواب
✍🏻 मुफ़्ती इमरान इस्माइल मेमन
🕌 उस्ताद, दारुल उलूम रामपुर, सुरत, गुजरात, इंडिया।
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