शिक्षक दखल
शिक्षक दखल
June 10, 2025 at 05:05 PM
इस पूरे मामले में जो सबसे खतरनाक है, वह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि समाज की उस मानसिकता की हत्या है जो तथ्यों से पहले फ़ैसला सुनाने लगती है। सोनम दोषी है या निर्दोष, यह तय करना कोर्ट का काम है, लेकिन सोशल मीडिया न्यायालयों ने तो सज़ा भी तय कर ली। जिस समाज में पुरुष और महिला के नजरिए से हर आंकलन हो, वहां असल अपराधी कभी कटघरे में खड़ा नहीं होता—वह भीड़ में खड़ा मुस्कुरा रहा होता है। अपराध का कोई लिंग नहीं होता, पर अफ़सोस कि समाज की बहुसंख्यक सोच आज भी जेंडर चश्मे से ही देखती है। अपराध, अपराध होता है—वह न स्त्री होता है, न पुरुष, न प्रेमी, न पराया। लेकिन हमने हर घटना को रिश्तों, भावनाओं, लिंग और पसंद के खांचों में रखकर उसका पोस्टमार्टम करना शुरू कर दिया है, मानो अदालत नहीं, ऑपिनियन-फैक्ट्री चला रहे हों। इस पूरे मामले में जो सबसे खतरनाक है, वह केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि समाज के सामूहिक विवेक की हत्या है। डरावना यह नहीं कि सोनम पर हत्या का आरोप है—डरावना यह है कि समाज ने सबूतों के इंतज़ार को ही बेमतलब मान लिया है। आज हम कोर्ट से पहले कैमरे घुमा रहे हैं, और साक्ष्य से पहले स्टेटस लगा रहे हैं। सोनम का मामला एक हत्या से ज़्यादा, एक आईना है—जिसमें झांककर हमें अपनी न्यायप्रियता नहीं, अपनी पूर्वाग्रहग्रस्त मानसिकता ही दिख रही है। एक बात और अगर आप न्याय चाहते हैं, तो पहले अपने भीतर बैठी 'जेंडरवादी अदालत' को भंग करिए, क्योंकि ऐसे मामलों में हमें अदालत से पहले विवेक, और कैमरों से पहले ख़ामोशी की ज़रूरत है। ✍️ *प्रवीण त्रिवेदी* 👉 https://www.facebook.com/share/p/16cRXngfZc/?mibextid=oFDknk 🤝 *प्रवीण त्रिवेदी* को *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *प्रवीण त्रिवेदी* को *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009

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