
शिक्षक दखल
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About शिक्षक दखल
सामर्थ्यहीन शिक्षक अपने शास्त्रों की भी रक्षा नही कर पायेगा। संभव है की इस राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने के लिए शिक्षक को सत्ताओ से भी लड़ना पड़े पर स्मरण रहे की सत्ताओ से राष्ट्र महत्वपूर्ण है। राजनैतिक सत्ताओ के हितो से राष्ट्रीय हित महत्वपूर्ण है। अत: राष्ट्र की वेदी पर सत्ताओ की आहुति देनी पड़े तो भी शिक्षक संकोच न करे। शिक्षक कभी साधारण नहीं होता प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं। यह हम नहीं चाणक्य कहकर गए हैं। अर्थात शिक्षक का दखल सत्ता हो या समाज, सदैव बना रहना चाहिए। 🤝 फॉलो करें *शिक्षक दखल*
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*सुबेरे की राम राम 🙏💐🚩* अब लोग दूसरों की हार से खुश होते हैं, अपनी जीत से नहीं। समाज में प्रतिस्पर्धा नहीं, ईर्ष्या पल रही है। जब दूसरों का गिरना तुम्हें ऊँचा महसूस कराए, तो समझो — तुम्हारी ऊँचाई नकली है। अगर वाकई बेहतर बनना है, तो खुद से लड़ो, और दूसरों को दुआ दो। *सुप्रभात ❤️*

एक बार फिर से ऐसा प्रतीत होता है कि नीति-निर्माण की प्रक्रिया में शिक्षा के मूल तत्वों की उपेक्षा की गई है। उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा हाल ही में लिया गया निर्णय — जिसमें छात्रों के लिए ग्रीष्मावकाश घोषित कर दिया गया है, लेकिन शिक्षकों को 15 दिनों तक विद्यालय में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया है — न केवल व्यावहारिक स्तर पर विरोधाभासी है, बल्कि यह शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी चिंताजनक है। क्या विद्यालय की संकल्पना छात्रविहीन परिसर में बैठे शिक्षकों से पूरी हो सकती है? क्या यह शिक्षा के उस आत्मा के विरुद्ध नहीं है, जिसमें शिक्षक और छात्र का परस्पर संवाद केंद्रीय तत्व होता है? शिक्षण कोई फैक्ट्री नहीं है, जहां उपस्थिति दर्ज कराकर उत्पादन किया जा सके। यह एक सजीव, मानवीय प्रक्रिया है जिसमें शिक्षक की उपस्थिति तभी सार्थक होती है जब छात्र सामने हों, जब प्रश्न-उत्तर हों, जब सोच और समझ का आदान-प्रदान हो। बिना छात्रों के विद्यालय में शिक्षक को बैठा देना ऐसा ही है जैसे किसी संगीतकार को बिना वाद्ययंत्र के मंच पर बिठा देना — न सुर होगा, न ताल, केवल मौन और निरर्थक प्रतीक्षा। शिक्षा का स्थान केवल भौतिक उपस्थिति से नहीं, बल्कि जीवंत अंतःक्रिया से पूर्ण होता है। नीति-निर्माताओं को यह समझने की आवश्यकता है कि विद्यालय एक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था है, कोई सरकारी दफ्तर नहीं। विद्यालय में शिक्षक की भूमिका बच्चों के साथ जुड़ाव, अनुकरण, संवाद और प्रेरणा की होती है। जब इन सबका ही वहां अभाव हो, तो केवल रिपोर्ट, डाटा, रजिस्टर और उपस्थिति की खानापूर्ति करवाना शिक्षण का अपमान नहीं तो और क्या है? पिछले कुछ वर्षों में यह प्रवृत्ति तेज़ी से बढ़ी है जिसमें शिक्षक को शिक्षा से अधिक प्रशासनिक कार्यों में झोंका गया है। अब यह व्यवस्था उस दिशा में बढ़ रही है जहां शिक्षक एक दफ्तर में बैठे कर्मचारी के रूप में बदल दिए गए हैं। यह आदेश भले ही कुछ 'आंतरिक कार्यों' और 'तैयारियों' के नाम पर उचित ठहराया जाए, लेकिन उसकी शिक्षाशास्त्रीय वैधता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। बच्चों की अनुपस्थिति में विद्यालय न तो शिक्षण का केंद्र रह जाता है, न ही उस वातावरण को जन्म दे पाता है जो एक शिक्षक के भीतर नए सत्र के लिए ऊर्जा भर सके। शिक्षकों को मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक रूप से तैयार करने का कार्य केवल बैठाकर नहीं किया जा सकता। इसके लिए मुक्त वातावरण, संवाद, प्रशिक्षण, चिंतन और नवाचार की आवश्यकता होती है — न कि कठोर हाज़िरी और बाबूगिरी के कामों की। इस निर्णय से यह भी स्पष्ट होता है कि जिम्मेदार अभी भी शिक्षक को एक विचारशील, प्रेरणादायक, समाज-निर्माता की भूमिका में नहीं देखता, बल्कि उसे एक ऐसा कर्मी मानता है जिसे आदेशों का पालन करना है, भले ही वे शिक्षा के मूल उद्देश्यों से कितना भी विचलित क्यों न हों। इस सोच को चुनौती देने की आवश्यकता है। शिक्षक कोई रजिस्टर भरने वाली मशीन नहीं है। वह उस रोशनी का वाहक है, जो तभी जलती है जब उसके सामने जिज्ञासा से भरे बालमन हों। अगर ऐसे निर्णय बार-बार लिए जाते रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब विद्यालय केवल बिल्डिंग रह जाएंगे, शिक्षक केवल क्लर्क, और शिक्षा केवल सरकारी आंकड़ों में गुम एक औपचारिकता बनकर रह जाएगी। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा का आधार बच्चों और शिक्षकों के बीच जीवंत संबंध पर टिका होता है — और उस संबंध के अभाव में विद्यालय की संकल्पना खोखली हो जाती है। इसलिए यह आवश्यक है कि इस निर्णय पर पुनर्विचार किया जाए। शिक्षकों के समय, श्रम और गरिमा को समझते हुए ऐसी योजनाएं बनाई जाएं जो न केवल नीति के हिसाब से उचित हों, बल्कि शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षक की भूमिका के अनुरूप भी हों। यही शिक्षा के हित में है, और यही समाज के भविष्य के हित में भी। ✍️ *प्रवीण त्रिवेदी* 🤝 *फेसबुक* पर करें *फॉलो* 👉 https://www.facebook.com/share/p/1F156DAMv7/?mibextid=oFDknk 🤝 *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009

यह चित्र हमें यह नहीं सिखाता कि ईश्वर कितना अच्छा पैकर है, बल्कि यह हमसे पूछता है – तुम खुद को कैसे रख रहे हो? तुमने अपने भीतर कितनी व्यवस्था बचा रखी है? तुम्हारे आचरण और विचारों की ‘पैकिंग’ कितनी साफ, कितनी जिम्मेदार, और कितनी सुंदर है? यह मूंगफली की छवि नहीं, एक दर्पण है – जो कहती है कि जो बोल नहीं सकते, वे भी ईश्वर की योजना में व्यवस्थित हैं, और जो सबसे अधिक बोलते हैं, वही सबसे ज्यादा अव्यवस्थित हो चुके हैं। यह चेतावनी है कि यदि अब भी हमने अपने खोल को नहीं पहचाना, तो हम दाना नहीं, बस एक छिलका बनकर रह जाएंगे – फेंका गया, कुचला गया, और भुला दिया गया। *प्रवीण त्रिवेदी* चित्र : व्हाट्सएप पर प्राप्त पोस्ट प्रेरणा : व्हाट्सएप पर प्राप्त एक संदेश पर 🤝 *फेसबुक* पर करें *फॉलो* 👉 https://www.facebook.com/share/p/18xVYPa5De/?mibextid=oFDknk 🤝 *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009

कल्पना मात्र से ही रूह कांप जाती है कि कैसे कुछ ही क्षणों में आसमान से ज़िंदगी धुएँ में बदल गई, और कितने घर, कितने सपने, कितनी मुस्कानें एक साथ जलकर राख हो गईं। जिन शवों को पहचानना तक मुश्किल है, उन अपनों को अब कोई नाम नहीं दे पाएगा—सिर्फ यादें बचेंगी, और गहरे शोक की एक स्याह लकीर। दुखद खबर सुनकर मन पूरी तरह स्तब्ध हो गया है। एअर इंडिया के बोइंग 787 ड्रीमलाइनर की भयावह दुर्घटना और उसमें सवार सभी 242 लोगों की असमय मृत्यु ने दिल को भीतर तक झकझोर दिया है। ईश्वर से प्रार्थना है कि मृतकों की आत्मा को शांति मिले और उनके परिवारों को इस असहनीय दुःख को सहने की शक्ति प्रदान हो। सभी दिवंगत आत्माओं को भावभीनी श्रद्धांजलि। यह केवल एक विमान हादसा नहीं, यह पूरे देश के सीने पर एक दर्दनाक दरार है, जिसे भरने में बरसों लग जाएंगे। *ॐ शांति 🙏💐🚩😔* 🤝 *फेसबुक* पर करें *फॉलो* 👉 https://www.facebook.com/share/v/1FonKU5hvt/?mibextid=oFDknk 🤝 *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009

मनी कंट्रोल डॉट कॉम —जिनका नाम ही यह वादा करता है कि वे धन, निवेश, बचत और आर्थिक अनुशासन पर केंद्रित रहेंगे—वे भी आज सोनम और राज सूर्यवंशी की क्राइम थ्रिलर में अपनी ट्रेडिंग (Trading) विंडो से ज्यादा ट्रेंडिंग (Trending) विंडो खोल बैठे हैं। एक फाइनेंशियल पोर्टल का धर्म होता है कि वह डेटा, शेयर, निवेश और योजनाओं की बात करे, न कि मर्डर मिस्ट्री और व्यक्तिगत चरित्र विश्लेषण की। मगर अफ़सोस, डिजिटल मीडिया का हर कमरा आज टीआरपी की अंधी दौड़ में एक अखाड़ा बन गया है, जहाँ मंदिर से लेकर बाजार तक, सब जगह बस "सोनम ने क्यों मारा?" यही गूंज रहा है। मनी कंट्रोल जैसा पोर्टल जब मनी छोड़ कर मॉरल पुलिसिंग करने लगें और आर्थिक सलाह की जगह अगर अपराध कथाएं परोसी जाएं, तो निवेशक घाटे में नहीं, भ्रम में डूबता है। यह उस विश्वास का ह्रास है जो पाठक अपने विशेष मीडिया माध्यमों में करता था। यह सिर्फ पत्रकारिता की दिशा का पतन नहीं है, बल्कि उस विश्वास का ह्रास है जो पाठक अपने "विशेषज्ञ माध्यमों" में करता था। ✍️ *प्रवीण त्रिवेदी* 🤝 *फेसबुक* पर करें *फॉलो* 👉 https://www.facebook.com/share/p/1YmGPFRgMc/?mibextid=oFDknk 🤝 *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009

हमारी सबसे खतरनाक सीमाएं वे नहीं होतीं जो दुनिया बनाती है, बल्कि वे होती हैं जो हम स्वयं खींचते हैं। रेखा खींचना प्रतीक है डर का — यह डर परिवर्तन का हो सकता है, असफलता का हो सकता है, या उस समाज का जो हर अलग सोच को ‘उचित दायरे’ में बांधना चाहता है। हम हर दिन अपनी सोच के चारों ओर अनगिनत रेखाएं खींचते हैं — "मैं यह नहीं कर सकता", "लोग क्या कहेंगे", "ये मेरा काम नहीं है" जैसी मानसिक सीमाएं। और इन रेखाओं के भीतर हम खुद को इतना कैद कर लेते हैं कि भूल जाते हैं कि हमारे पंख भी थे। ✍️ *प्रवीण त्रिवेदी* 👉 https://www.facebook.com/share/p/1Ax7vwXZTp/?mibextid=oFDknk 🤝 *फेसबुक* पर करें *फॉलो* 👉 https://www.facebook.com/share/p/16yRiJEEmp/?mibextid=oFDknk 🤝 *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009

इस पूरे मामले में जो सबसे खतरनाक है, वह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि समाज की उस मानसिकता की हत्या है जो तथ्यों से पहले फ़ैसला सुनाने लगती है। सोनम दोषी है या निर्दोष, यह तय करना कोर्ट का काम है, लेकिन सोशल मीडिया न्यायालयों ने तो सज़ा भी तय कर ली। जिस समाज में पुरुष और महिला के नजरिए से हर आंकलन हो, वहां असल अपराधी कभी कटघरे में खड़ा नहीं होता—वह भीड़ में खड़ा मुस्कुरा रहा होता है। अपराध का कोई लिंग नहीं होता, पर अफ़सोस कि समाज की बहुसंख्यक सोच आज भी जेंडर चश्मे से ही देखती है। अपराध, अपराध होता है—वह न स्त्री होता है, न पुरुष, न प्रेमी, न पराया। लेकिन हमने हर घटना को रिश्तों, भावनाओं, लिंग और पसंद के खांचों में रखकर उसका पोस्टमार्टम करना शुरू कर दिया है, मानो अदालत नहीं, ऑपिनियन-फैक्ट्री चला रहे हों। इस पूरे मामले में जो सबसे खतरनाक है, वह केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि समाज के सामूहिक विवेक की हत्या है। डरावना यह नहीं कि सोनम पर हत्या का आरोप है—डरावना यह है कि समाज ने सबूतों के इंतज़ार को ही बेमतलब मान लिया है। आज हम कोर्ट से पहले कैमरे घुमा रहे हैं, और साक्ष्य से पहले स्टेटस लगा रहे हैं। सोनम का मामला एक हत्या से ज़्यादा, एक आईना है—जिसमें झांककर हमें अपनी न्यायप्रियता नहीं, अपनी पूर्वाग्रहग्रस्त मानसिकता ही दिख रही है। एक बात और अगर आप न्याय चाहते हैं, तो पहले अपने भीतर बैठी 'जेंडरवादी अदालत' को भंग करिए, क्योंकि ऐसे मामलों में हमें अदालत से पहले विवेक, और कैमरों से पहले ख़ामोशी की ज़रूरत है। ✍️ *प्रवीण त्रिवेदी* 👉 https://www.facebook.com/share/p/16cRXngfZc/?mibextid=oFDknk 🤝 *प्रवीण त्रिवेदी* को *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *प्रवीण त्रिवेदी* को *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009

कक्षा में शिक्षण की निरंतर प्रक्रिया के बीच एक शिक्षक को न केवल छात्रों की सीखने की प्रवृत्तियाँ समझ में आती हैं, बल्कि उसके अपने अनुभव से यह भी ज्ञात होता है कि किसी शिक्षक की कल्पनाशीलता, संवेदनशीलता और शैक्षिक दृष्टि किस स्तर की है। यदि इस शिक्षण यात्रा की सूक्ष्मतम गतिविधियाँ दस्तावेज़ी रूप में संकलित होने लगें तो यह न केवल उस शिक्षक के लिए बल्कि समूची शिक्षा व्यवस्था के लिए एक अमूल्य धरोहर बन सकती है। ऐसे आत्मकथ्य जो सीधे-सीधे कक्षा की मिट्टी से उपजे हैं, वे किसी भी औपचारिक शोध से अधिक जीवंत, ईमानदार और मौलिक होते हैं। हर अनुभव एकदम निजी, निश्छल और प्रमाणिक होता है—जिसे न तो सजाया गया है, न गढ़ा गया है। ऐसे लेखन को केवल शिक्षक की आत्मकथा कह देना उसे सीमित कर देना होगा; दरअसल यह तो उस विशेष समय और परिवेश का जीवंत शैक्षिक इतिहास बन जाता है। जब कोई शिक्षक अपने अनुभवों को शब्द देता है, तो वह अनजाने में शिक्षा प्रशासन, शिक्षक-प्रशिक्षण, अभिभावकों और भावी शिक्षकों के लिए भी एक दृष्टिकोण का द्वार खोल देता है। जो भी इस लेखन से जुड़ता है—वह केवल जानकारी नहीं, प्रेरणा और दिशा प्राप्त करता है। यह वही जीवंत पाठ होता है जिसे बार-बार पढ़ने पर हर बार एक नया अर्थ निकलता है, और यही इसकी सबसे बड़ी शक्ति है। ✍️ *प्रवीण त्रिवेदी* 👉 https://www.facebook.com/share/p/15TbjfQpiN/?mibextid=oFDknk

*सुबेरे की राम राम 🙏💐🚩* अब संघर्ष छुपा दिया जाता है, और सफलता को सजाकर बेचा जाता है। लोग पसीने से नहीं, फिल्टर से प्रेरित होते हैं। इसलिए नई पीढ़ी मंज़िल चाहती है, मगर रास्ते से डरती है। अगर भविष्य को मजबूत बनाना है, तो चमक नहीं, चरित्र को आदर्श बनाना होगा। *सुप्रभात ❤️*

ओम निश्चल जी की ये ग़ज़ल सिर्फ़ शेरों की साज-सज्जा नहीं, व्यवस्था की विवेक-हत्या पर तीखी टिप्पणी है। यहां बेचैनी है, कटाक्ष है, और हर मिसरे में एक अघोषित घोषणा—कि बिकने वालों की फ़ेहरिस्त में कोई भी अछूता नहीं। ✍️ *प्रवीण त्रिवेदी* 🤝 *फेसबुक* पर करें *फॉलो* 👉 https://www.facebook.com/share/p/1Bqt6ZPaHk/?mibextid=oFDknk 🤝 *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009