
शिक्षक दखल
June 11, 2025 at 04:46 AM
हमारी सबसे खतरनाक सीमाएं वे नहीं होतीं जो दुनिया बनाती है, बल्कि वे होती हैं जो हम स्वयं खींचते हैं। रेखा खींचना प्रतीक है डर का — यह डर परिवर्तन का हो सकता है, असफलता का हो सकता है, या उस समाज का जो हर अलग सोच को ‘उचित दायरे’ में बांधना चाहता है।
हम हर दिन अपनी सोच के चारों ओर अनगिनत रेखाएं खींचते हैं — "मैं यह नहीं कर सकता", "लोग क्या कहेंगे", "ये मेरा काम नहीं है" जैसी मानसिक सीमाएं। और इन रेखाओं के भीतर हम खुद को इतना कैद कर लेते हैं कि भूल जाते हैं कि हमारे पंख भी थे।
✍️ *प्रवीण त्रिवेदी*
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