शिक्षक दखल
शिक्षक दखल
June 11, 2025 at 05:56 PM
ओम निश्चल जी की ये ग़ज़ल सिर्फ़ शेरों की साज-सज्जा नहीं, व्यवस्था की विवेक-हत्या पर तीखी टिप्पणी है। यहां बेचैनी है, कटाक्ष है, और हर मिसरे में एक अघोषित घोषणा—कि बिकने वालों की फ़ेहरिस्त में कोई भी अछूता नहीं। ✍️ *प्रवीण त्रिवेदी* 🤝 *फेसबुक* पर करें *फॉलो* 👉 https://www.facebook.com/share/p/1Bqt6ZPaHk/?mibextid=oFDknk 🤝 *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009

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