
शिक्षक दखल
June 14, 2025 at 07:41 PM
बचपन में हमें पिताजी की जिन मूंछों से डर लगता था, आज वही मूंछें सबसे सशक्त और आत्मीय प्रतीक लगती हैं। उनका रौब, उनका सख्त व्यवहार उस समय कठोर अनुशासन जैसा लगता था, लेकिन अब महसूस होता है कि उसमें भी एक गहरा प्रेम छुपा हुआ था।
जब खुद पिता का दायित्व निभा रहे तो अब समझ आता है कि पिता केवल पालनहार नहीं होते, वे समय पर खामोशी से खुद को पीछे कर देने वाले वो योद्धा होते हैं, जो बिना किसी वाहवाही के हमारा भविष्य गढ़ते हैं। *फादर्स डे* के बहाने आज मन बार-बार उसी बचपन में लौटना चाहता है, जब डर के पीछे भी सुरक्षा थी और डांट के नीचे भी ढेर सारा प्यार।
*आप सभी को पितृ दिवस की बधाई और शुभकामनाएं। आप सभी पर सदैव पितृ छाया बनी रहे।* 🙏💐🚩
✍️ *प्रवीण त्रिवेदी*
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