
शिक्षक दखल
June 16, 2025 at 11:10 AM
एक नन्हा बच्चा जब एक मासूम पिल्ले को चलना सिखा रहा होता है, तो वह दृश्य सिर्फ करुणा का नहीं, बल्कि शिक्षाशास्त्र का सबसे सुंदर और मौलिक रूप है। यह हमें सिखाता है कि सीखना कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक भावनात्मक संवाद है—जहाँ न पाठ्यक्रम होता है, न परीक्षा, फिर भी जीवन के सबसे बड़े पाठ पढ़ाए और सीखे जा सकते हैं।
शिक्षाशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह घटना बताती है कि सीखने की शुरुआत संबंधों से होती है, वहाँ से नहीं जहाँ घंटी बजती है या उपस्थिति दर्ज की जाती है। एक शिक्षक का कार्य सिर्फ विषयों का ज्ञान देना नहीं, बल्कि उस भाव को जगाना है जिसमें सीखने की इच्छा और सिखाने की संवेदना दोनों समाहित हों।
यह दृश्य यह भी सिद्ध करता है कि बच्चे जब सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में सहज रूप से उतरते हैं, तो वे करुणा, धैर्य, और सहअस्तित्व जैसे मूल्यों को आत्मसात कर लेते हैं—बिना किसी पाठ योजना के, बिना किसी श्रेणी या ग्रेड के। यदि हम इस छोटे दृश्य को समझ सकें, तो हमें यह भी स्वीकारना होगा कि वास्तविक शिक्षा वही है जो व्यक्ति को अधिक मानव बनाती है। और यदि हमारे विद्यालयों में यह मानवीयता, यह कोमलता और यह आत्मीय जुड़ाव नहीं है, तो वहाँ सिर्फ सूचनाओं का आदान-प्रदान हो रहा है, शिक्षा नहीं।
शिक्षा तब सार्थक होती है, जब वह जीवन के प्रति दृष्टि देती है—और वह दृष्टि सबसे पहले एक बच्चे की करुणा में दिखती है, न कि किसी किताब की मोटाई में। इसलिए यह दृश्य सिर्फ एक क्षण नहीं, एक प्रश्न है—क्या हम अपने बच्चों को इतना समय, स्पर्श और आत्मीयता दे रहे हैं कि वे खुद को और दुनिया को प्यार से समझ सकें? अगर नहीं, तो हमें पुनः सोचना होगा कि शिक्षा किस ओर जा रही है।
✍️ *प्रवीण त्रिवेदी*
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