शिक्षक दखल
शिक्षक दखल
June 16, 2025 at 04:56 PM
हर वो सोच जो खुद को ज़रूरी समझती है – हर बहस में, हर बहाने में, हर बग़ैर बुलावे के – वह लोकतंत्र नहीं, दखलतंत्र गढ़ रही होती है। हस्तक्षेप की यह आदत अब सलाह नहीं रही, यह एक बीमारी बन चुकी है – दूसरों के निर्णयों पर संदेह, हर व्यवस्था में घुसपैठ, और हर चुप्पी को अपराध मान लेना। यह सोच मानती है कि दुनिया को उसकी राय की ज़रूरत है, चाहे कोई मांगे या नहीं। असल भय यह है कि ये ‘सुधारक’ अब संवाद नहीं चाहते – वे सिर्फ़ समर्पण चाहते हैं। ये वही लोग हैं जो दूसरों की ज़िंदगियों को सुधारने की कोशिश में अपने भीतर की अव्यवस्था का महिमामंडन करते हैं। याद रखिए, समाज को दिशा देने के लिए रास्ता दिखाना पड़ता है, दखल देना नहीं। वरना, विचार की जगह आदेश, और सहयोग की जगह नियंत्रण राज करेगा। क्योंकि हस्तक्षेप जब आदत बन जाए – तो आज़ादी सिर्फ़ नारा रह जाती है। ✍️ *प्रवीण त्रिवेदी* 🤝 *फेसबुक* पर करें *फॉलो* 👉 https://www.facebook.com/share/p/1EAkuUp85B/?mibextid=oFDknk 🤝 *व्हाट्सएप* पर करें *फ़ॉलो* https://whatsapp.com/channel/0029VaAZJEQ8vd1XkWKVCM3b 🤝 *इंस्टाग्राम* पर करें *फ़ॉलो* 👉 https://www.instagram.com/praveentrivedi009

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