Vivek Sen
Vivek Sen
June 14, 2025 at 04:35 PM
जब एक मां की चीखें भी अस्पताल के जनरेटर को न जगा सकें, तो समझ लीजिए कि राज्य की व्यवस्था कोमा में है कागज़ों पर लाखों-करोड़ों रुपये के बजट पास होते हैं। अस्पतालों के लिए डीज़ल के बिल भी बनते हैं। मंत्रियों की गाड़ियाँ, वीआईपी रैलियाँ और उद्घाटन समारोह कभी रुकते नहीं — लेकिन एक जेनरेटर रुक जाता है, क्योंकि उसमें ईंधन नहीं है।मां अस्पताल के गलियारे में चिल्लाती रही मेरा बेटा मर जाएगा! जेनरेटर चला दो, भगवान के लिए चलवा दो मगर सिस्टम के पास डीज़ल नहीं था। सिस्टम के पास कोई जवाब नहीं था। सिस्टम के पास केवल एक मौत दर्ज करने की फुर्सत थी। सरफराज की मौत कोई हादसा नहीं है — यह खुलेआम हत्या है। यह इस बात की स्याह गवाही है कि हम एक ऐसे प्रदेश में जी रहे हैं जहाँ जान बचाने की मशीनें हैं, इमारतें हैं, कागज़ी योजनाएँ हैं — मगर भरोसेमंद इंतज़ाम नहीं हैं।
😢 👍 6

Comments