⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
June 12, 2025 at 02:53 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८२/आषाढ़/कृ./१-१८१९२*
*┈┉══════❀((""ॐ""))❀══════┉┈*
*।। ॐ तत्सत् ।। ।। श्रीगणेशायः नमः ।।*
🚩 *श्रीमद्भागवतमहापुराणम्* 🚩
⛳ *चतुर्थः स्कन्धः* ⛳
⛳ *अथाष्टमोऽध्यायः*⛳
🚩🕉️ *ध्रुव का वन_गमन*🚩🕉️
⛳ *श्लोक_४१से ४५* ⛳
🔆 *धर्मार्थकाममोक्षाख्यं य इच्छेच्छ्रेय आत्मनः । एकमेव हरेस्तत्र कारणं पादसेवनम् ।।४१।।*
👉 अर्थात् _जिस पुरुष को अपने लिये धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप पुरुषार्थ की अभिलाषा हो, उसके लिये उनकी प्राप्ति का उपाय एकमात्र श्री हरि के चरणों का सेवन ही है ।।४१।।
🔆 *तत्तात गच्छ भद्रं ते यमुनायास्तटं शुचि । पुण्यं मधुवनं यत्र सांनिध्यं नित्यदा हरेः ।।४२।।*
👉 अर्थात् _बेटा! तेरा कल्याण होगा, अब तू श्री यमुना जी के तटवर्ती परम पवित्र मधुवन को जा। वहाँ श्रीहरि का नित्य-निवास है ।।४२।।
🔆 *स्नात्वानुसवनं तस्मिन् कालिन्द्याः सलिले शिवे । कृत्वोचितानि निवसन्नात्मनः कल्पितासनः ।।४३।।*
👉 अर्थात् _वहाँ श्री कालिन्दी के निर्मल जल में तीनों समय स्नान करके नित्यकर्म से निवृत्त हो यथाविधि आसन बिछाकर स्थिरभाव से बैठना ।।४३।।
🔆 *प्राणायामेन त्रिवृता प्राणेन्द्रियमनोमलम् । शनैर्युदस्याभिध्यायेन्मनसा गुरुणा गुरुम् ।।४४।।*
👉 अर्थात् _फिर रेचक, पूरक और कुम्भक-तीन प्रकार के प्राणायाम से धीरे-धीरे प्राण, मन और इन्द्रिय के दोषों को दूरकर धैर्ययुक्त मन से परमगुरु श्री भगवान् का इस प्रकार ध्यान करना ।।४४।।
🔆 *प्रसादाभिमुखं शश्ववत्प्रसन्नवदनेक्षणम् । सुनासं सुध्रुवं चारुकपोलं सुरसुन्दरम् ।।४५।।*
👉 अर्थात् _भगवान् के नेत्र और मुख निरन्तर प्रसन्न रहते हैं; उन्हें देखने से ऐसा मालूम होता है कि वे प्रसन्नतापूर्वक भक्त को वर देने के लिये उद्यत हैं। उनकी नासिका, भौंहें और कपोल बड़े ही सुहावने हैं; वे सभी देवताओं में परम सुन्दर हैं ।।४५।।
🕉️ *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥* 🕉️
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अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम् ।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत् ॥
*गुरु बृहस्पति देव जी की जय*
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