⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
June 19, 2025 at 02:37 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈* *लेख क्र.-सधस/२०८२/आषाढ़/कृ./८-१८२६१* *┈┉══════❀((""ॐ""))❀══════┉┈* ⛳🚩🚩🛕 *जय श्रीराम* 🛕🚩🚩⛳ ************************************** 🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏 ************************ 🌞 *श्रीरामचरितमानस* 🌞 🕉️ *सप्तम सोपान* 🕉️ ☸️ *उत्तर काण्ड*☸️ ⛳ *चौपाई १ से ५, दोहा ७७ क, ख*⛳ *अरुन पानि नख करज मनोहर। बाहु बिसाल बिभूषन सुंदर ॥ कंध बाल केहरि दर ग्रीवा। चारु चिबुक आनन छबि सींवा ।।* लाल-लाल हथेलियाँ, नख और अँगुलियाँ मन को हरने वाले हैं और विशाल भुजाओं पर सुन्दर आभूषण हैं। बालसिंह (सिंह के बच्चे) के से कंधे और शंख के समान (तीन रेखाओं से युक्त) गला है। सुन्दर ठुड्डी है और मुख तो छबि की सीमा ही है॥ १ ॥ *कलबल बचन अधर अरुनारे । दुइ दुइ दसन बिसद बर बारे ॥ ललित कपोल मनोहर नासा । सकल सुखद ससि कर सम हासा ।।* कलबल (तोतले) वचन हैं, लाल-लाल ओंठ हैं। उज्ज्वल, सुन्दर और छोटी-छोटी [ऊपर और नीचे] दो-दो दूँतुलियाँ हैं। सुन्दर गाल, मनोहर नासिका और सब सुखों को देनेवाली चन्द्रमा की [ अथवा सुख देनेवाली समस्त कलाओं से पूर्ण चन्द्रमा की] किरणों के समान मधुर मुसकान है ॥ २ ॥ *नील कंज लोचन भव मोचन । भ्राजत भाल तिलक गोरोचन ॥ बिकट भृकुटि सम श्रवन सुहाए। कुंचित कच मेचक छबि छाए ॥* नीले कमल के समान नेत्र जन्म-मृत्यु [के बन्धन] से छुड़ाने वाले हैं। ललाट पर गोरोचन का तिलक सुशोभित है। भौंहें टेढ़ी हैं, कान सम और सुन्दर हैं, काले और घुँघराले केशों की छबि छा रही है ॥ ३ ॥ *पीत झीनि झगुली तन सोही। किलकनि चितवनि भावति मोही ॥ रूप रासि नृप अजिर बिहारी। नाचहिं निज प्रतिबिंब निहारी ॥* पीली और महीन अँगुली शरीर पर शोभा दे रही है। उनकी किलकारी और चितवन मुझे बहुत ही प्रिय लगती है। राजा दशरथजी के आँगन में विहार करने वाले रूप की राशि श्रीरामचन्द्रजी अपनी परछाहीं देखकर नाचते हैं, ॥ ४ ॥ *मोहि सन करहिं बिबिधि बिधि क्रीड़ा। बरनत मोहि होति अति ब्रीड़ा ॥ किलकत मोहि धरन जब धावहिं । चलउँ भागि तब पूप देखावहिं ॥* और मुझसे बहुत प्रकार के खेल करते हैं, जिन चरित्रों का वर्णन करते मुझे लज्जा आती है ! किलकारी मारते हुए जब वे मुझे पकड़ने दौड़ते और मैं भाग चलता, तब मुझे पूआ दिखलाते थे ॥ ५ ॥ *दोहा* *आवत निकट हँसहिं प्रभु भाजत रुदन कराहिं। जाउँ समीप गहन पद फिरि फिरि चितइ पराहिं ॥ ७७ (क) ॥* मेरे निकट आने पर प्रभु हँसते हैं और भाग जाने पर रोते हैं और जब मैं उनका चरण स्पर्श करनेके लिये पास जाता हूँ, तब वे पीछे फिर-फिरकर मेरी ओर देखते हुए भाग जाते हैं ॥ ७७ (क) ॥ *प्राकृत सिसु इव लीला देखि भयउ मोहि मोह । कवन चरित्र करत प्रभु चिदानंद संदोह ॥ ७७ (ख) ॥* साधारण बच्चों-जैसी लीला देखकर मुझे मोह (शङ् का) हुआ कि सच्चिदानन्दघन प्रभु यह कौन [महत्त्व का] चरित्र (लीला) कर रहे हैं ॥ ७७ (ख) ॥ 🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏🚩⛳ *समिति के सभी संदेश नियमित पढ़ने हेतु निम्न व्हाट्सएप चैनल को फॉलो किजिए ॥🙏🚩⛳* https://whatsapp.com/channel/0029VaHUKkCHLHQSkqRYRH2a ▬▬▬▬▬▬๑⁂❋⁂๑▬▬▬▬▬▬ *जनजागृति हेतु लेख प्रसारण अवश्य करें* ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये। मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि ॥ *भगवान सत्यनारायण देव जी की जय* *⛳⚜सनातन धर्मरक्षक समिति⚜⛳*
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