⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
June 20, 2025 at 02:32 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८२/आषाढ़/कृ./९-१८२७१*
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⛳🚩🚩🛕 *जय श्रीराम* 🛕🚩🚩⛳
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🙏 *श्रीराम – जय राम – जय जय राम* 🙏
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🌞 *श्रीरामचरितमानस* 🌞
🕉️ *सप्तम सोपान* 🕉️
☸️ *उत्तर काण्ड*☸️
⛳ *चौपाई १ से ४, दोहा ७८ क, ख*⛳
*एतना मन आनत खगराया। रघुपति प्रेरित ब्यापी माया ॥ सो माया न दुखद मोहि काहीं। आन जीव इव संसृत नाहीं ॥*
हे पक्षिराज ! मन में इतनी [शङ्का] लाते ही श्रीरघुनाथजी के द्वारा प्रेरित माया मुझ पर छा गयी। परन्तु वह माया न तो मुझे दुःख देनेवाली हुई और न दूसरे जीवों की भाँति संसार में डालने वाली हुई ॥ १ ॥
*नाथ इहाँ कछु कारन आना। सुनहु सो सावधान हरिजाना ।। ग्यान अखंड एक सीताबर । माया बस्य जीव सचराचर ।।*
हे नाथ! यहाँ कुछ दूसरा ही कारण है। हे भगवान् के वाहन गरुड़जी ! उसे सावधान होकर सुनिये । एक सीतापति श्रीरामजी ही अखण्ड ज्ञानस्वरूप हैं और जड-चेतन सभी जीव माया के वश हैं ॥ २ ॥
*जौं सब कें रह ग्यान एकरस । ईस्वर जीवहि भेद कहहु कस ॥ माया बस्य जीव अभिमानी । ईस बस्य माया गुन खानी ॥*
यदि जीवों को एकरस (अखण्ड) ज्ञान रहे, तो कहिये, फिर ईश्वर और जीव में भेद ही कैसा ? अभिमानी जीव माया के वश है और वह [सत्त्व, रज, तम - इन] तीनों गुणों की खान माया ईश्वर के वश में है ॥ ३ ॥
*परबस जीव स्वबस भगवंता । जीव अनेक एक श्रीकंता ॥ मुधा भेद जद्यपि कृत माया । बिनु हरि जाइ न कोटि उपाया ॥*
जीव परतन्त्र है, भगवान् स्वतन्त्र हैं; जीव अनेक हैं, श्रीपति भगवान् एक हैं। यद्यपि माया का किया हुआ यह भेद असत् है तथापि वह भगवान् के भजन बिना करोड़ों उपाय करने पर भी नहीं जा सकता ॥ ४ ॥
*दोहा*
*रामचंद्र के भजन बिनु जो चह पद निर्बान ।*
*ग्यानवंत अपि सो नर पसु बिनु पूँछ बिषान ॥ ७८ (क) ॥*
श्रीरामचन्द्रजी के भजन बिना जो मोक्षपद चाहता है, वह मनुष्य ज्ञानवान् होने पर भी बिना पूँछ और सींग का पशु है ॥ ७८ (क) ॥
*राकापति षोडस उअहिं तारागन समुदाइ। सकल गिरिन्ह दव लाइअ बिनु रबि राति न जाइ ॥ ७८ (ख) ॥*
सभी तारागणों के साथ सोलह कलाओं से पूर्ण चन्द्रमा उदय हो और जितने पर्वत हैं उन सबमें दावाग्नि लगा दी जाय, तो भी सूर्य के उदय हुए बिना रात्रि नहीं जा सकती ॥ ७८ (ख) ॥
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त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥
*माता महालक्ष्मी देवी जी की जय*
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