⛳सनातन धर्मरक्षक समिति⛳
June 20, 2025 at 08:38 AM
*┈┉सनातन धर्म की जय,हिंदू ही सनातनी है┉┈*
*लेख क्र.-सधस/२०८२/आषाढ़/कृ./९-१८२७७*
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🟠 *स्वदेशी चिकित्सा* 🟠
*आरोग्यं परमं भाग्यं स्वास्थ्यं सर्वार्थसाधनम्*
त्यागः प्रज्ञापराधानामिन्द्रियोपशमः स्मृतिः । देशकालात्मविज्ञानं सवृत्तस्यानुवर्तेंनम् ।। अथर्वविहिता शान्तिः प्रतिकूलग्रहार्चनम् । भूताद्यस्पर्शनोपायो निर्दिष्टश्च पृथक् पृथक् ।। अनत्पत्यै समासेन विधिरेष प्रदर्शितः ।
निजागन्तुविकारार्णामुत्पन्नानां च शान्तये ।।
अर्थ : रोगों का चिकित्सासूत्र-प्रज्ञापराधों का त्याग, इन्द्रियों में शान्ति स्मरण शक्ति का उद्बोधन, देश, काल और आत्मा का विज्ञान अर्थात् मैं किस वातादि प्रकृति का हूं उसका पूर्ण ज्ञान और सघृत का पालन करना। अथर्ववेद में बतायी गयी शान्तियों का सेवन प्रतिकूल सूर्यादि ग्रहों की पूजा भूत प्रेतादि का शरीर में आवेश न हो इसके लिए अलग-अलग उपाय भूतबाधा प्रतिषेध नामक उतरतंत्र क अध्याय में बताया गया है। उसका सेवन करने से निज और आगन्तुक रोगों के न होने का संक्षेपोपाय बताया गया है। और उत्पन्न व्याधियों की चिकित्सा भी इन्हीं के द्वारा बतायी गयी है।
विश्लेषण : यहाँ यह संक्षेप में निज या आगन्तुक रोगों के न होने तथा उत्पन्न रोगों के शान्ति का उपाय बताया गया है। प्राज्ञापराध अर्थात् असत् आचरण इसका त्याग जैसे-इन्द्रियों में शान्ति से इन्द्रियों का विषयों के साथ अतियोग मिथ्यायोग और हीनयोग का न होना, स्मृति से पूर्व में किये गए आहार विहार का समुचित रूप में स्मरण होना, देश से जांगल आनूप साधारण, काल से शीत वर्षा और उषण काल आदि, विज्ञान से में किस प्रकृति का हूं और मेरे लिए कौन कौन सा आहार-विहारअनुकूल पड़ता है इसका ज्ञान होना रोगों के उत्पन्न न होने का मुख्य कारण है। इस प्रकार दिनरात का विचार कर कार्य क रने वाला व्यक्ति किसी भी प्रकार रोगों से पीड़ित नहीं होता है। विशेषकर भूत प्रेतादि के आवेश से तथा सूर्यादि ग्रहों के प्रतिकूल होने से रोग होते हैं इसमें अथर्ववेद में बतायी गयी शान्ति करनी चाहिये। यदि ग्रह की दुष्ट दशा हो तो ग्रहों की पूजा करनी चाहिये। और इस ग्रंथ में भी भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न देवादि ग्रह पकड़ न सके इसका उपाय सघृत में एवं अनागतवाधा प्रतिषेध अध्याय में बताया गया है।
*आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।*
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