श्रुति-युक्ति-अनुभूति
श्रुति-युक्ति-अनुभूति
May 26, 2025 at 11:49 AM
सोलह वर्ष तक ब्राह्मण के उपनयन का काल अवतीत हो जाता है। क्षत्रिय और वैश्य इन दोनों का काल बाईस और चौबीस वर्ष तक क्रम से अतीत नहीं होता है। इस उपयुक्त समय से ऊपर जो भी इन तीनों वर्णों का समय है ब्रह्म में ये तीनों ही वर्ण पतित सावित्री वाले हो जाया करते हैं अर्थात् ये पतित होकर सावित्री के अधिकारी नहीं रहा करते हैं। इस काल के ऊपर ये प्रायश्चित के करने के भी अधिकारी नहीं रहा करते हैं। उपनयन के प्रतिषेध होने ही से सर्वत्र प्रतिषेध सिद्ध हो जाता है। इस काल के ऊपर भी लालच से अथवा अज्ञान से कोई उपनयन करता है तो अनुचित है। उनको जो सावित्री के प्राप्त करन के अधिकार से पतित हो गये हैं उनका उपनयन-अध्यापन-यजनन और व्यवहार कुछ भी नहीं करना चाहिए। — आश्वलायन गृह्यसूत्र
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