
श्रुति-युक्ति-अनुभूति
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वेद-स्मृति-पुराण। दर्शन-विज्ञान-व्यवहार। ज्ञान-कर्म-भक्ति।
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सोलह वर्ष तक ब्राह्मण के उपनयन का काल अवतीत हो जाता है। क्षत्रिय और वैश्य इन दोनों का काल बाईस और चौबीस वर्ष तक क्रम से अतीत नहीं होता है। इस उपयुक्त समय से ऊपर जो भी इन तीनों वर्णों का समय है ब्रह्म में ये तीनों ही वर्ण पतित सावित्री वाले हो जाया करते हैं अर्थात् ये पतित होकर सावित्री के अधिकारी नहीं रहा करते हैं। इस काल के ऊपर ये प्रायश्चित के करने के भी अधिकारी नहीं रहा करते हैं। उपनयन के प्रतिषेध होने ही से सर्वत्र प्रतिषेध सिद्ध हो जाता है। इस काल के ऊपर भी लालच से अथवा अज्ञान से कोई उपनयन करता है तो अनुचित है। उनको जो सावित्री के प्राप्त करन के अधिकार से पतित हो गये हैं उनका उपनयन-अध्यापन-यजनन और व्यवहार कुछ भी नहीं करना चाहिए। — आश्वलायन गृह्यसूत्र

सोलह वर्ष तक ब्राह्मण का काल अतीत नहीं होता है। बाईस वर्ष तक क्षत्रिय का उपनयन काल अतीत नहीं होता है। चौबीस वर्ष की आयु तक वैश्य के उपनयन संस्कार का समय अवतीत रहा करता है । इन बतायी हुई तीनों वर्णों की अवस्थाओं से ऊपर ये सब सावित्री के अधिकार से पतित हो जाया करते हैं। सावित्री से पतित हो जाने वाले इन लोगों का फिर उपनयन नहीं करना चाहिए। न इन लोगों का अध्यापन ही करना चाहिए। इन पतितों से याजन कर्म भी न करावें। इन पतित दशा मे पहुँच जाने वालों के साथ कोई व्यवहार भी नहीं रखना चाहिए। — शाखायन गृह्यसूत्र

अनेकों व्यक्ति कर्म से ब्राह्मण होने की वकालत करते हैं। यद्यपि भगवद्कृपा से हम-आप उनका खण्डन करने का बल रखते हैं परन्तु फिर भी एक स्थान पर उक्त विषय पर धर्मग्रंथों से संकलित सभी वचन नहीं मिल पाते हैं। इसलिए यह प्रमाण साझा कर रहे हैं। आप लोग कंठस्थ कर सकते हैं या सेव करके रख लीजिए।

‘आ ब्रह्मन् ब्राह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायतामाराष्ट्रे’ (यजुर्वेद२२।२२) *इस मंत्र में जन्म से ब्राह्मण के लिए ब्रह्मवर्चस की प्रार्थना की गयी है। अत: वेदसे जन्मना ब्राह्मणादि जाति सिद्ध होते हैं।* ब्राह्मणो जन्मना श्रेयान् सर्वेषां प्राणिनामिह । (श्रीमद्भागवत महापुराण) *जन्म से ही ब्राह्मण सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है।* जन्मनैव महाभागो ब्राह्मणो नाम जायते । नमस्य: सर्वभूतानामतिथि: प्रसृताग्रभुक्॥ (महाभारत) *ब्राह्मण जन्म से ही महान् है और सभी प्राणियों के द्वारा पूजनीय है।* जन्मना लब्धजातिस्तु (श्रीमद्देवीभागवत महापुराण) *जाति की प्राप्ति जन्म से ही है।* जन्मना चोत्तमोऽयं च सर्वार्चा ब्राह्मणोऽर्हति॥ (भविष्य पुराण) *ब्राह्मण जन्म से ही उत्तम है, और सबों के द्वारा सम्माननीय है।* जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः (पराशर उपपुराण, वैखानस कल्पसूत्र) *जन्म से ब्राह्मण, संस्कार से द्विज, विद्या से विप्र और तीनों से श्रोत्रिय होता है।* तप: श्रुताभ्यां यो हीनो जातिब्राह्मण एव स: (महाभाष्य) *जो तप और विद्यासे हीन है वह केवल जाति से ब्राह्मण होता है।* तद्य इह रमणीयचरणाभ्यासो ह यत्ते रमणीयां योनिमापद्येरन् ब्राह्मणयोनिं वा क्षत्रिययोनिं वा वैश्ययोनिं वाथ य इह कपूयचरणाभ्यासो ह यत्ते कपूयां योनिमापद्येरनश्वयोनिं वा शूकर योनिं वा चाण्डालयोनिं वा। (छान्दोग्योपनिषत्) *जो अच्छे आचरणवाले होते हैं वे शीघ्र ही उत्तमयोनि को प्राप्त होते हैं। वे ब्राह्मणयोनि, क्षत्रिययोनि अथवा वैश्ययोनि प्राप्त करते हैं तथा अशुभ आचरण वाले होते हैं वे तत्काल अशुभ योनिको प्राप्त होते हैं। वे कुत्ते की योनि, सूकर की योनि अथवा चाण्डालयोनि प्राप्त करते हैं।*

ऋतुकाल में पत्नी की कामना की पूर्ति करना धर्म है। —संवर्तस्मृति

ब्राह्मणों के लिए भोजन का नियम — कात्यायनस्मृति