
Bihar Congress
May 26, 2025 at 03:33 PM
मिलिये इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक़ से!
भारत के साहित्य जगत के लिए एक गर्व का पल तब आया जब बानू मुश्ताक़ को उनके लघु कथा संग्रह 'हार्ट लैंप' के लिए इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। ये पुरस्कार किसी कन्नड़ भाषा में लिखी किताब को पहली बार मिला है।
बानू का जन्म कर्नाटक के एक छोटे से कस्बे में हुआ था। एक मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ी बानू ने कठिन हालात में भी हार नहीं मानी। बचपन में उर्दू में कुरान पढ़ीं, लेकिन उनके पिता ने उन्हें कन्नड़ माध्यम के स्कूल में दाख़िला दिलाया। यहीं से शुरू हुआ उनका साहित्यिक सफर।
'हार्ट लैंप' में उन्होंने दक्षिण भारत की मुस्लिम महिलाओं के संघर्षों और समाज की पितृसत्तात्मक सोच के बीच उनके जीवन की सच्चाइयों को संवेदनशीलता से बयान किया है।
इन कहानियों का अंग्रेज़ी अनुवाद दीपा भास्ती ने किया है।
बानू खुद भी कई संघर्षों से गुज़रीं। शादी के बाद का जीवन आसान नहीं था। घरेलू जिम्मेदारियों, मानसिक तनाव और समाज के दबावों के बीच उन्होंने लेखन को अपना हथियार बनाया। उनकी कहानियों में महिलाएं न सिर्फ़ सहती हैं, बल्कि चुपचाप विद्रोह भी करती हैं, और यही उनकी सबसे बड़ी ताक़त है।
बानू पत्रकार रहीं, वकील बनीं, और 'बांदाया आंदोलन' से जुड़कर सामाजिक न्याय की आवाज़ बनीं। उनके विचारों ने उन्हें धमकियों और विरोध का सामना भी कराया, लेकिन वे कभी नहीं डरीं।
आज जब बानू मुश्ताक़ को ये अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिला है, तो यह सिर्फ़ एक लेखिका की जीत नहीं है बल्कि यह भारत की क्षेत्रीय भाषाओं, महिलाओं की आवाज़ और हाशिए पर जी रहे समुदायों के संघर्षों की भी जीत है।
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