
RSS संघ को समझना है तो शाखा में आओ......
June 20, 2025 at 03:25 PM
21 जून/जन्म-दिवस
प्रखर वक्ता एवं लेखक धर्मनारायण शर्मा
संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री धर्मनारायण शर्मा का जन्म उदयपुर (राजस्थान) में 21 जून, 1940 (आषाढ़ प्रतिपदा) को श्री देवीलाल जी एवं माणकबाई चौबीसा के घर में हुआ था। इसी दिन नागपुर में डा. हेडगेवार का देहांत भी हुआ था। आठ भाई बहिनों में उनका नंबर दूसरा था। देवीलाल जी मेवाड़ राज्य के मठ मंदिरों की देखरेख करने वाली धर्मसभा में कार्यरत थे। 1947 के बाद यह राजस्थान के देवस्थान विभाग में मिल गयी।
स्कूली पढ़ाई के दौरान 15 वर्ष की अवस्था में वे शाखा जाने लगे। 1959 में कक्षा दस उत्तीर्ण कर वे प्रचारक बने। यद्यपि लौकिक पढ़ाई कुछ आगे भी हुई। उन दिनों ठाकुरदास जी यहां प्रचारक थे। दादाजी ने नाराज होकर उनके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट लिखाई; पर धर्मनारायण जी पीछे नहीं हटे। 1962 में उन्होंने तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण पूर्ण किया। 1959 से 1969 तक वे राजस्थान में ब्यावर, डीडवाना, अलवर, दौसा, जयपुर में नगर तथा फिर जिला प्रचारक रहे। 1970 में उन्हें अजमेर विभाग की जिम्मेदारी मिली।
आपातकाल में वे पकड़े नहीं जा सके। आपातकाल के बाद 1977 से 84 तक वे जोधपुर विभाग एवं फिर संभाग प्रचारक रहे। 1984 से 94 वे महाकौशल के सहप्रांत और फिर प्रांत प्रचारक रहे। संघ के शारीरिक कार्यक्रमों, मुख्यतः दंड और नियुद्ध में उनकी बहुत रुचि थी। अतः 1994 में भोपाल केन्द्र बनाकर उन्हें मध्य प्रदेश क्षेत्र का शारीरिक प्रमुख बनाया गया।
धर्मनारायण जी एक प्रभावी वक्ता थे। 1995 में कोलकाता केन्द्र बनाकर उन्हें विश्व हिन्दू परिषद में अंचल सह संगठन मंत्री बनाया गया। वर्ष 2000 में उन्हें दिल्ली बुलाकर केन्द्रीय मंत्री तथा वि.हि.प के अन्र्तगत ‘एकल अभियान’ में जिम्मेदारी दी गयी। 2003 से 2017 तक वे श्री मोहन जोशी के साथ ‘धर्मप्रसार विभाग’ के सहप्रमुख और फिर अ.भा.प्रमुख रहे। इस दौरान उन्होंने सैकड़ों सेवा केन्द्र खोले और हजारों लोगों की हिन्दू धर्म में वापसी कराई।
राजस्थान में ब्यावर जिला वनवासी बहुल है। वहां वि.हि.प के अनेक प्रकल्प चलते हैं। उसमें खर्च भी बहुत होता है। जब उनके दिल की बाइपास सर्जरी हुई, तब अस्पताल में रहते हुए भी वे उसकी चिन्ता करते रहते थे। सर्जरी के बाद प्रवास से विश्राम देकर उन्हें वि.हि.प की केन्द्रीय प्रबंध समिति का सदस्य बनाया गया। जीवन के अंत तक वे इस जिम्मेदारी का निर्वहन करते रहे।
उनकी दिनचर्या बहुत नियमित थी। वे नहाकर ही प्रातः स्मरण एवं फिर शाखा में आते थे। उनके धार्मिक एवं सामाजिक लेख अनेक पत्रिकाओं में छपते थे। वि.हि.प की केन्द्रीय बैठकों में हिन्दी प्रस्ताव प्रायः वही बनाते थे। वि.हि.प द्वारा प्रकाशित उनकी प्रमुख पुस्तकंे हैं - शाश्वत हिन्दुत्व, व्यक्ति से व्यक्तित्व, भगवान बलराम, संस्कृति के उज्जवल नक्षत्र, राष्ट्रमाता भारतमाता की वंदना, ईसाइयत की विकृत कृति, धर्मग्रंथों में रामराज्य, अमरयोगी महाराजा भृतहरि, मोहन जोशी की जीवनी, लोकदेवता बाबा रामदेव, लोकदेवता जाहरवीर गोगा, लव जिहाद, भगवान सूर्य एवं संध्या (दो खंड), भगवान सत्यनारायण..आदि। वर्तमान आवश्यकता के अनुसार वे आदर्श हिन्दू आचार संहिता पर लम्बे समय से काम कर रहे थे। उनके आधार पर वि.हि.प के विश्व विभाग के प्रमुख स्वामी विज्ञानानंद ने अंग्रेजी में ‘हिन्दू मैनिफेस्टो’ लिखा है।
आयुवृद्धि स्वयं में एक रोग है। धर्मनारायण जी भी उसके अपवाद नहीं थे। पिछले वर्ष दिल का वाल्व खराब होने पर डाॅक्टरों ने आॅपरेशन से मना कर दिया। वे समझ गये कि अब चलने का समय आ गया है। वे प्रायः कहते थे कि यह शरीर पुराना हो गया है। मैं इसे छोड़ने को तैयार हूं। पुनर्जन्म लेकर फिर आऊंगा और अधूरे काम पूरे करूंगा। 21 मार्च, 2025 को दिल्ली स्थित वि.हि.प. के केन्द्रीय कार्यालय पर उनका देहावसान हुआ।
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