
Dr. Dilip Kumar Pareek
May 23, 2025 at 05:13 PM
प्रेम.....
जैसे-जैसे ऊपर उठता है
ऊपर उठाता है
प्रेमियों को
आशाएं खिलखिला उठती है
आँखों में चमक आ जाती है
फूल बिन मौसम खिल जाते हैं
काँटे चुभते हैं पर दर्द नहीं होता
हर पल कोई छूता सा लगता है
बातें बताने से ज्यादा सुननी अच्छी लगती है
हम हल्के हो जाते हैं
चिड़िया के उस पंख की माफ़िक
जो धवल है और बह रहा है आकाश में
हम गुण द्रष्टा हो जाते हैं
हमें ऐब नजर ही नहीं आते
एड़ियाँ ऊपर उठती हैं
पाँव जमीन पर नहीं होते
कोई उठा ले जाता है
किसी ऊँचे पहाड़ पर
और हमारी आँखें खूबसूरत हो जाती है
हर इंतजार सुहाता है
बिस्तर और नर्म हो जाते है
तकिया अभिन्न अंग
हम खुद से बातें करने लगते हैं
दुःख में सुख की अनुभूति होती है
सूली पर टंकना अभीष्ट लगता है
प्रेम
ऊपर उठाता है
प्रेमियों को......
डॉ. दिलीप कुमार पारीक

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