Dr. Dilip Kumar Pareek
Dr. Dilip Kumar Pareek
May 25, 2025 at 03:36 AM
मैं जब भी पढ़ने की कोशिश करता हूँ तुम दिखने लगती हो। मैं जब भी तुम्हें लिखने की कोशिश करता हूँ तुम अदृश्य हो जाती हो। तुम्हारी अनुभूति की आँख मिचोली में मैं सो नहीं पाता तुम्हारा हो नहीं पाता....। Dr. Dilip kumar pareek
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