
Dr. Dilip Kumar Pareek
May 27, 2025 at 05:02 PM
मैंने हमेशा खुद से सवाल किए
और पूछा कि जो कर रहा हूँ
क्या वह सही है ?
क्या यह और बेहतर हो सकता है ?
हर बार कोई न कोई जवाब आया
स्वयं के तर्क की कसौटी पर
उन्हें कसा गया
और फिर वो किया गया
जो अंदर से करने को कहा गया
मैं मानता हूँ
मैं हर जगह सही नहीं हो सकता
पर जो भी किया
वह उस समय का श्रेष्ठतम विवेक था
मुझे काश में विश्वास नहीं
इसलिए मैं प्रयत्न और इसके प्रकार में
कोताही नहीं बरतता
फल से मुझे कोई सरोकार ना था, ना है
आप्त होना आसान नहीं है
प्रामाणिकता का आरंभ
आत्मा से होता है
तो स्वयं को दुनिया के सामने अच्छा सिद्ध करना
बन्द कीजिए
और खुद से बातें कीजिए
आपके सबसे अच्छे दोस्त आप स्वयं हैं।
Dr. Dilip kumar pareek

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