एक कहानी सुंदर सी
June 21, 2025 at 01:32 PM
* मम्मी जी आपके पास कुछ काम तो है नहीं, बस बैठे-बैठे रिवाज बनाती रहती हो * " ये क्या मम्मी जी, आपको पता था ना कि मुझे आज जरूरी काम से बाहर जाना है। फिर भी आप इतनी देर बाद आ रही हो। आप जानबूझकर ऐसा करती हो। ताकि मुझे दो बातें सुनने को मिले " मानसी अपनी सास गरिमा जी से बोली। " बहू में मंदिर ही तो गई थी। तुम्हारे पापा जी को गए चार महीने हो गए थे तो पंडित जी को तुम बुलाने देते नहीं हो। तो खाना और दक्षिणा पंडित जी को देने गई थी। और कितना लेट हो गई हूं मैं? पांच मिनट ही तो लेट हुआ है। उस पर इतना नाराज होने की क्या जरूरत है " गरिमा जी ने कहा। " मम्मी जी पांच मिनट भी कम नहीं होते हैं। मेरे पांच मिनट भी बड़े कीमती है। पर आपको भला क्या पता? हमेशा घर में ही तो रही हो। बस बैठ कर फालतू के रिवाज ही बनाती रहती हो" मानसी ने चिढ़ते हुए कहा और घर के बाहर अपना पर्स लेकर निकल गई। सुनकर गरिमा जी के पैर वहीं रुक गए। उन्हें दरवाजे पर यूं खड़ी देखकर बेटा पीयूष बोला, " मम्मी अब बाहर ही खड़ी रहोगी या अंदर भी आओगी।जल्दी से मेरा नाश्ता लगा दो। मुझे ऑफिस के लिए लेट हो रहा है " गरिमा जी कुछ देर तक पीयूष को यूं ही देखते रही। जब बेटे के लिए ही मां का मान सम्मान नहीं है तो बहू से क्या उम्मीद करें। वो चुपचाप अंदर आई और रसोई में आकर पीयूष के लिए नाश्ता निकालने लगी। नाश्ता निकालते निकालते भी पीयूष ने दो-तीन बार उन्हें आवाज लगा दी, " और कितनी देर लगेगी मम्मा कितनी धीरे-धीरे काम करने लगी हो आप। फिर कहती हो कि तुम लोग मेरी बात नहीं सुनते। आपकी हरकतें ऐसी है कि आपको सुनाए नहीं तो और क्या करें" नाश्ता लेकर आते-आते गरिमा जी की आंखों में आंसू आने लगे। पर पीयूष को उससे कुछ लेना देना नहीं था। उसने ना ही उनकी तरफ देखा। उसने चुपचाप नाश्ता किया और गरिमा जी को यूं ही छोड़कर रवाना हो गया। उसके जाते ही गरिमा जी सोफे पर धम्म से बैठ गई। क्या स्थिति हो गई है उनकी। पति क्या गए मान सम्मान भी चला गया। वरना उनके सामने बेटे बहु दोनों में से किसी की भी हिम्मत नहीं थी कि इतना कुछ उन्हें कह जाए। अभी चार महीने पहले घर का माहौल बिल्कुल सही था। घर में पति सोमेश जी, गरिमा जी, बेटा पीयूष और बहू मानसी ही थे। छोटा सा परिवार था। पर सोमेश जी का घर और बाहर दोनों ही जगह अच्छा खासा रुतबा था। सोमेश जी सरकारी अफसर थे। शुरू से डिसिप्लिन में रहे थे तो उन्होंने पीयूष को भी डिसिप्लिन में ही रखा था। और यह बात मानसी को भी शादी के कुछ दिन में ही अच्छे से समझ में आ गई थी। जब उसने उन्हें पलट कर जवाब दिया था। और सोमेश जी ने अच्छी खासी डांट पिला दी थी। दरअसल हुआ यूं था कि शादी के कुछ दिन बाद गरिमा जी ने मानसी को कहा, " बहु कल संडे है। हम अभी तक कुल देवी के मंदिर नहीं गए हैं। तो कल तुम जल्दी तैयार हो जाना। ताकि कुलदेवी के मंदिर दर्शन करके आ सके" 'क्या आफत है। एक ही तो संडे मिलता है। उसमें भी कुलदेवी के मंदिर जाना है। पर इस गंवार औरत को कौन समझाए' मानसी मन ही मन सोचने लगी। फिर बोली, " मम्मी जी क्या जाना जरूरी है" " हां बेटा, कुलदेवी के मंदिर तो जाना जरूरी है। और ये तो फिर हमारे रीति रिवाज है। शादी के बाद एक बार नव विवाहित जोड़े को कुलदेवी के दर्शन जरूर करवाए जाते हैं। ताकि उनका विवाह सफल हो सके और वो जिंदगी भर खुश रह सके" गरिमा जी ने कहा। " पर मम्मी जी, मैं जॉब करती हूं। एक ही तो संडे मिलता है मुझे। उसमें तो कम से कम आराम करने दो" " बहु दर्शन करके ही तो आना है। ज्यादा से ज्यादा तीन घंटे लगेंगे। आने के बाद तुम आराम कर लेना। तुम्हें कौन सा काम करना है" सुनकर मानसी चिढ़ गई और गरिमा जी से बोली, "मम्मी जी मैंने तो सोचा था कि सुबह लेट उठूंगी। और फिर दिन में पीयूष के साथ मूवी देखने जाऊंगी। पर आप नहीं समझेंगी। एक वर्किंग वुमन में और एक हाउसवाइफ में बहुत फर्क होता है। एक वर्किंग वुमन आपकी तरफ फ्री नहीं होती है। मेरे पास आपकी तरह वक्त नहीं होता है " मानसी ने जिस तरीके से गरिमा जी से कहा था, ये बात सोमेश जी ने सुन ली। और उन्हें ये बात बिल्कुल अच्छी नहीं लगी तो उन्होंने मानसी से कहा, " बहू ये कैसे बात कर रही हो तुम अपनी सास से" सोमेश जी की आवाज सुनते ही एक पल के लिए तो मानसी चुप हो गई। लेकिन फिर बोली, " पापा जी क्या गलत कह रही हूं मैं? अब मम्मी जी तो कभी खुद घर के बाहर निकली नहीं है। इन्हें क्या पता मेरी परेशानियां" " बेटा तुम्हारी मम्मी जी कमाने के लिए बाहर नहीं निकली है। लेकिन उनकी बदौलत तुम कमा पाती हो। एक हाउसवाइफ को कम मत समझो। उनकी भी रिस्पेक्ट होती है" सोमेश जी ने कहा। " बहुत अच्छे से जानती हूं मैं ऐसी हाउसवाइफ को। दिनभर घर में बैठी रहेगी और नये-नये रीति रिवाज बनाती रहेगी" मानसी ने धीरे से कहा। 👇👇
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