एक कहानी सुंदर सी
June 21, 2025 at 01:33 PM
लेकिन ये बात सोमेश जी को सुनाई दे गई। " बहु तमीज से बात करो। भूलों मत तुम्हारी मम्मी भी एक हाउसवाइफ है। अगर तुम अपनी सास की इंसल्ट कर रही हो तो तुम अपनी मम्मी की भी इंसल्ट कर रही हो। क्या तुम अपनी मम्मी को भी ऐसे जवाब देती थी। इस घर में रहना है तो बड़ों को मान सम्मान देना पड़ेगा। हम तुम्हें छुट्टी करने को नहीं कह रहे हैं। तुम्हारे छुट्टी के दिन में से सिर्फ तीन घंटे तुमसे मांग रहे हैं। क्या इतना भी हक नहीं है हमारा तुम पर" तब सोमेश जी के सामने मानसी ज्यादा कुछ कह नहीं पाई थी। लेकिन अभी चार महीने पहले सोमेश जी की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई। बस उसके बाद सब कुछ बदल गया। जिन बेटे बहू की आवाज तक नहीं निकलती थी अब वो तक गरिमा जी पर शेर हो चुके थे। जो मन में आता था सुना देते थे। जैसे चाहे वैसे उनके साथ व्यवहार करते थे। यहां तक कि पहले जो नौकरानी आती थी अब उसे भी काम से हटा दिया गया था। और सारा काम गरिमा जी पर लाद दिया गया था। गरिमा जी को काम से इतनी ज्यादा समस्या नहीं थी। पर जिस तरीके से बेटे बहु व्यवहार करते थे, उन्हें उससे समस्या थी। खैर गरिमा जी काफी देर तक बैठी बैठी सोचती रही। फिर उन्होंने कुछ निर्णय लिया और उठकर अपने कमरे में आ गई। शाम को जब पीयूष और मानसी दोनों एक साथ घर में आए तो नौकरानी को घर में काम करते देखकर चिढ़ गए। " ये यहां क्या कर रही है? हमने तो इसे निकाल दिया था" मानसी ने कहा। " बहु मैंने इसे वापस रखा है। तुम्हारे पापा के जाने के बाद अब मुझसे इतने काम नहीं होते " गरिमा जी ने कहा। ये सुनकर मानसी पीयूष की तरफ देखने लगी। तब पीयूष ने कहा, " मम्मी आपने किस से पूछ कर इसे यहां रखा? और रखा तो रखा। उसकी पगार कौन देगा" " अब घर मेरा है तो इसे रखने से पहले मुझे किसी की इजाजत की जरूरत नहीं है। और रही बात पगार की तो मेरे किराएदार मुझे जो किराया देंगे, उससे मैं इसकी पगार चुका दूंगी" गरिमा जी ने मुस्कुराते हुए कहा। " ओह!तो अब आप किराएदार रख रही है। आपको नहीं लगता कि बड़े जल्दी-जल्दी निर्णय ले रही हैं आप। और कहां है आपके किराएदार? " मानसी ने कहा। " बेटा तुम दोनों ही हो मेरे किराएदार। घर मेरा है। फिर भी तुम मुझे जो चाहे वो सुना देते हो। तो भला मैं क्यों सुनूंगी ये सब? तो मैंने डिसाइड किया है कि या तो तुम इज्जत से रहो और मुझे मंथली कुछ पैसा दे दिया करो। तो ठीक है। वरना तुम लोग अपना बंदोबस्त कहीं और कर लो। मैं किसी और को यहां किराएदार रख लूंगी। और ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है मुझसे अब। इस बारे में मैं अपना मन पक्का कर चुकी हूं " गरिमा जी ने बड़ी ही शांतिपूर्वक जवाब दिया। " अच्छा! मम्मी आप में इतनी हिम्मत है कि हम चले जाएंगे तो आप अकेली रह लोगी" पीयूष ने कहा। " बेटा तुम्हारे पापा के बगैर भी तो रह ही रही हूं ना। तो तुम्हारे बगैर भी रह लूंगी। तुम जाना चाहो तो बिल्कुल जा सकते हो" गरिमा जी ने कहा। आखिर गरिमा जी के कड़े रूख को देखकर दोनों ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। आखिर दोनों को गरिमा जी की बात को मानना ही पड़ा। अब वो लोग गरिमा जी को महीने के दस हजार रूपए देते थे। और गरिमा जी को ज्यादा कुछ कहते भी नहीं थे। आखिर जो मां अपने बच्चों से किराया ले सकती है। इसका अब कोई भरोसा नहीं। वो प्रॉपर्टी से बेदखल भी कर सकती है। इसलिए दोनों चुप थे।
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