AAO APNI ISLAAH KAREN [JRM]
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June 15, 2025 at 08:11 AM
*नूर की सरकार से पाया दोशाला नूर का* *हो मुबारक तुमको ज़ुन्नूरैन जोड़ा नूर का* हज़रत सैय्यदुना उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमान रसूलुल्लाह ﷺ: *अगर मेरी दस बेटियाँ भी होतीं तो मैं एक के बाद दूसरी से तुम्हारा निकाह कर देता, क्योंकि मैं तुमसे राज़ी हूँ।* (मु'अजम औसत, जिल्द 4, सफ्हा 322, हदीस: 6116) नबी-ए-रहमत ﷺ के ये एजाज़ी और रज़ामंदी के कलिमात मुसलमानों के उस अज़ीम ख़ैरख़्वाह, हमदर्द और ग़मगुसार हस्ती के लिए हैं जिसे ख़लीफ़ा-ए-सालिस (यानि तीसरे ख़लीफ़ा) अमीरुल-मु'मिनीन हज़रत सैय्यदुना उस्मान-ए-ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के नाम से जाना जाता है। *पैदाइश व क़ुबूल-ए-इस्लाम:* *आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु आमुल-फील (अबरहा बादशाह के मक्का मुकर्रमा पर हाथियों के साथ हमले) के छह साल बाद मक्का मुकर्रमा में पैदा हुए।* (अल-इसाबा, जिल्द 4, सफ्हा 377) *आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु उन खुश नसीबों में से हैं जिन्होंने इब्तिदा ही में दाई-ए-इस्लाम ﷺ की पुकार पर लब्बैक कहा।* (मुअजम कबीर, जिल्द 1, सफ्हा 85, हदीस: 124) *इस्लाम लाने के बाद चचा हकम बिन अबू अल-आस ने आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु को रस्सियों से बांध दिया और दीन-ए-इस्लाम छोड़ने को कहा, तो आपने साफ़ साफ़ कह दिया:* "*मैं दीन-ए-इस्लाम को कभी भी नहीं छोड़ूँगा और न ही कभी इससे जुदा होऊँगा।* (तारीख़ इब्न असाकिर, जिल्द 39, सफ्हा 26 मुख़्तसरन) हुलिया मुबारक़ा: आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का सीना चौड़ा, क़द दरमियाना – न ज़्यादा लंबा न ज़्यादा छोटा, और ख़द-ओ-ख़ाल हसीन थे जिन्हें गंदुमी रंग ने और भी पुरकशिश बना दिया था, जबकि ज़र्द खिज़ाब में रंगी हुई बड़ी दाढ़ी चेहरे पर बहुत भली मालूम होती थी। (तारीख़ इब्न असाकिर, जिल्द 39, सफ्हा 12) *अलक़ाब व एअजा़ज़ात:* *आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने रहमत-ए-आलम ﷺ की दो शहज़ादियों रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से एक के बाद दूसरी से निकाह करके ज़ून्नूरैन (दो नूर वाले) का लक़ब पाया। हज़रत सैय्यदुना लूत अ़लैहिस्सलाम के बाद आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु सबसे पहली हस्ती हैं जिन्होंने रज़ा-ए-इलाही की खातिर अपने अहल-ए-ख़ाना के साथ हिजरत फ़रमाई।* (मुअजम कबीर, जिल्द 1, सफ्हा 90, हदीस: 143) *और हिजरत भी एक नहीं बल्कि दो बार की – एक मर्तबा हब्शा की तरफ और दूसरी बार मदीने की जानिब।* (तारीख़ इब्न असाकिर, जिल्द 39, सफ्हा 8) *आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने दुनिया में क़ुरआन करीम की नश्र व इशाअत फ़रमा कर उम्मत-ए-मुसलिमा पर एहसान-ए-अज़ीम किया और जामिउल-क़ुरआन होने का इअज़ाज़ पाया।* *आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने ज़माना-ए-जाहिलियत में भी न कभी शराब पी, न बदकारी के क़रीब गए, न कभी चोरी की, न गाना गाया और न ही कभी झूठ बोला*। (अर-रियाज़ुन्नज़रा, जिल्द 2, सफ्हा 33; तारीख़ इब्न असाकिर, जिल्द 39, सफ्हा 27, 225) सीरत-ए-मुबारका: *अदब, सख़ावत, ख़ैरख़्वाही, हया, सादगी, आजिज़ी, रहम-दिली, दिलजोई, फ़िक्र-ए-आख़िरत, इत्तिबा-ए-सुन्नत और ख़ौफ़-ए-ख़ुदा – ये तमाम आपकी सीरत-ए-मुबारका के रोशन पहलू हैं।* *अदब-ए-रसूल:* *ऐसा कि जिस हाथ से रहमत-ए-आलम ﷺ के दस्त-ए-हक़ परस्त पर बैअत की, उस हाथ से कभी अपनी शर्मगाह को नहीं छुआ*। (मुअजम कबीर, जिल्द 1, सफ्हा 85, हदीस: 124) सख़ावत: ऐसी कि ग़ज़वा-ए-तबूक के मौके़ पर मुसलमानों की बे-सरो सामानी को देखकर पहली बार सौ ऊँट, दूसरी बार दो सौ ऊँट और तीसरी बार तीन सौ ऊँट देने का वादा किया। (तिरमिज़ी, जिल्द 5, सफ्हा 391, हदीस: 3720 मुख़्तसरन) मगर हाज़िर करने के वक़्त आपने 950 ऊँट, 50 घोड़े और 1000 अशरफ़ियाँ पेश कीं, फिर बाद में 10 हज़ार अशरफ़ियाँ और पेश कीं। (मिरआतुल मनाजिह, जिल्द 8, सफ्हा 395) *ख़ैरख़्वाही:* *ऐसी कि हर जुमा को ग़ुलाम आज़ाद करते, अगर किसी जुमा नागा हो जाता तो अगले जुमा दो ग़ुलाम आज़ाद करते थे।* (तारीख़ इब्न असाकिर, जिल्द 39, सफ्हा 28) *बा-हया:* *ऐसे कि बंद कमरे में ग़ुस्ल करते हुए न अपने कपड़े उतारते और न ही अपनी कमर सीधी कर पाते।* (हिल्यतुल औलिया, जिल्द 1, सफ्हा 94) *लिबास में सादगी:* *ऐसी कि माल व दौलत की फ़रावानी के बावजूद जुमा के दिन मिंबर पर ख़ुत्बा देते हुए भी चार या पाँच दिरहम का मामूली तहबंद जिस्म की ज़ीनत होता*। (मअरिफ़तुस्सहाबा, जिल्द 1, सफ्हा 79) *खाने में सादगी:* *ऐसी कि लोगों को अमीरों वाला खाना खिलाते और ख़ुद घर जाकर सिरका और ज़ैतून पर गुज़ारा करते।* (अज़-ज़ुह्द लिल-इमाम अहमद, सफ़्हा 155, रक़म: 684) *आजिज़ी :* *ऐसी कि ख़िलाफ़त जैसे अज़ीम मंसब पर फ़ाइज़ होने के बावजूद ख़च्चर पर सवार होते तो पीछे ग़ुलाम को बिठाने में कोई आर (शर्म) महसूस न करते।* (अज़-ज़ुह्द लिल-इमाम अहमद, सफ्हा 153, रक़म: 672 माख़ूज़न) *रहम-दिली*: *ऐसी कि ख़ादिम या ग़ुलाम के आराम का ख़याल फ़रमाते और रात के वक़्त कोई काम पड़ता तो ख़ादिमों को जगाना मुनासिब न समझते और अपना काम अपने हाथ से कर लेते थे*। (तारीख़ इब्न असाकिर, जिल्द 39, सफ्हा 236) *दिलजोई:* की ऐसी प्यारी आदत कि एक बार हज़रत मुग़ीरा बिन शु'बह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के ग़ुलाम का निकाह हुआ तो उसने आपको शिरकत की दावत दी। आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तशरीफ़ लाए और फ़रमाया: "*मैं रोज़े से हूँ मगर मैंने ये पसंद किया कि तुम्हारी दावत को क़बूल करूं और तुम्हारे लिए बरकत की दुआ करूं।*" (अज़-ज़ुह्द लिल-इमाम अहमद, सफ़्हा 156, रक़्म: 689) *इबादत गुज़ार:* *ऐसे थे कि रात के इब्तिदाई हिस्से में आराम कर के बाक़ी रात इबादत में मसरूफ़ रहते, जब कि दिन नफ़्ली रोज़े में गुज़रता।* (अज़-ज़ुह्द लिल-इमाम अहमद, सफ़्हा 156, रक़्म: 688) *तिलावत-ए-क़ुरआन के आशिक़:* *ऐसे कि एक रकअत में ख़त्म-ए-क़ुरआन कर लिया करते थे।* (मुअजम कबीर, जिल्द 1, सफ़्हा 87, हदीस: 130) ख़ुद फ़रमाया करते थे: "*अगर तुम्हारे दिल पाक हों तो कभी भी कलाम-ए-इलाही से सेर न हों।*" (अज़-ज़ुह्द लिल-इमाम अहमद, सफ़्हा 154, रक़्म: 680) *'अशरह मुबश्शरह' (दस जन्नती सहाबी) में शामिल होने के बावजूद फ़िक्र-ए-आख़िरत:* *ऐसी कि जब किसी क़ब्र के पास खड़े होते तो इस क़दर रोते कि आँसुओं से आपकी रेश (यानि दाढ़ी) मुबारक तर हो जाती।* (तिर्मिज़ी, जिल्द 4, सफ़्हा 138, हदीस: 2315) *इत्तिबा-ए-सुन्नत का जज़्बा:* ऐसा कि मस्जिद के दरवाज़े पर बैठ कर बकरी की दस्ती का गोश्त मंगवाया और खाया और बग़ैर ताज़ा वुज़ू किए नमाज़ अदा की, फिर फ़रमाया: "*रसूलुल्लाह ﷺ ने भी इसी जगह बैठ कर यही खाया था और इसी तरह किया था।*" (मुस्नद अहमद, जिल्द 1, सफ़्हा 137, हदीस: 441 मुलख़्ख़सاً) ख़ौफ़-ए-ख़ुदा: ऐसा कि एक बार अपने ग़ुलाम से फ़रमाया: "*मैंने एक मर्तबा तुम्हारा कान खींचा था, तुम मुझसे उसका बदला ले लो,*" उसने कान पकड़ा तो फ़रमाया: "ज़ोर से खींचो!" फिर फ़रमाया: "*कितनी अच्छी बात है कि क़िसास का मामला दुनिया ही में हल हो जाए, आख़िरत में न हो।*" (अर-रियाज़ुन्नज़रह, जिल्द 2, सफ़्हा 45) *दौर-ए-ख़िलाफ़त:* *आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु यकम मुहर्रमुल हराम 24 हिजरी को मसनद-ए-ख़िलाफ़त पर फ़ाइज़ हुए। आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के दौर-ए-ख़िलाफ़त में अफ़्रीका, मुल्क-ए-रोम का बड़ा इलाक़ा और कई बड़े शहर इस्लामी सल्तनत का हिस्सा बने।* *26 हिजरी में मस्जिद-ए-हराम की तौसीअ और 29 हिजरी में मस्जिद-ए-नबवी शरीफ़ की तौसीअ करते हुए पत्थर के सुतून और सागवान की लकड़ी की छत बनवाई।* (तारीख़ुल ख़ुलफ़ा, सफ़्हा 122-124 मुलख़्ख़सاً) *विसाल मुबारक:* *आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने बारह साल ख़िलाफ़त पर फ़ाइज़ रह कर 18 ज़ुल्हिज्जतुल हराम सन 35 हिजरी को, यौम-ए-जुमा रोज़े की हालत में, तक़रीबन 82 साल की तवील उम्र पाकर निहायत मज़लूमियत के साथ जाम-ए-शहादत नोश फ़रमाया।* *जन्नत के दूल्हा:* शहादत के बाद हज़रत सैयदुना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा ने रहमत-ए-आलम ﷺ को ख़्वाब में फ़रमाते हुए सुना: "*बेशक! उस्मान (रज़ियल्लाहु तआला अन्हु) को जन्नत में आलीशान दूल्हा बनाया गया है।*" (अर-रियाज़ुन्नज़रह, जिल्द 2, सफ़्हा 67)
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